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सुरढ़ ज्ञान प्राप्त करने में समर्थ हो सकेंगे। इसी पुस्तक में अपभ्रंश व्याकरण के संज्ञा व सर्वनाम के संस्कृत भाषा में लिखे सूत्रों का विवेचन प्रस्तुत किया गया है। सूत्रों का विश्लेषण एक ऐसी शैली से किया गया है, जिससे अध्ययनार्थी संस्कृत के प्रति सामान्य ज्ञान से ही सूत्रों को समझ सके। सूत्रों को पांच सोपानों में समझाया गया है-1. सूत्रों में प्रयुक्त पदों का सन्धिविच्छेद किया गया है, 2. सूत्रों में प्रयुक्त पदों की विभक्तियां लिखी गई हैं, 3. सूत्रों का शब्दार्थ लिखा गया है, 4. सूत्रों का पूरा अर्थ (प्रसंगानुसार) लिखा गया है तथा 5. सूत्रों के प्रयोग लिखे गये हैं ।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि 'प्रौढ़ अपभ्रंश रचना सौरभ भाग 1' के प्रकाशन से अपभ्रंश अध्ययन-अध्यापन के कार्य को गति मिल सकेगी और 'अपभ्रंश साहित्य अकादमी' अपने उद्देश्य की पूर्ति में द्रुतगति से अग्रसर हो सकेगी। मुझे सूचित करते हुए हर्ष है कि 'प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ भाग 2' लेखनप्रक्रिया में है । इसके माध्यम से सन्धि, समास, कारक मौर अपभ्रंश व्याकरण के शेष सूत्र समझाए जा सकेंगे।
पुस्तक के प्रकाशन की व्यवस्था के लिए जैन विद्या संस्थान समिति का माभारी हूँ । अकादमी के कार्यकर्ता एवं मदरलैण्ड प्रिंटिंग प्रेस धन्यवादाह हैं।
वीर निर्वाण संवत् 2523 दिनांक 25-4-97
डॉ. कमलचन्द सोगाणी
संयोजक जनविद्या संस्थान समिति
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