Book Title: Pratishthakalpa Anjanshalakavidhi
Author(s): Sakalchandra  Gani, Somchandravijay
Publisher: Nemchand Melapchand Zaveri Jain Vadi Upashray Surat

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ अंतरोद्गार मारो वर्षांथी भावना हती के नाना बाळकने दीक्षा आपवी अने तेमने बधी रीते तैयार करवा जेथी शासनना अनेक कार्य करी शके. पू. गुरुभगवंतनी पूर्ण कृपादृष्टि आज जोवा मळी. परंतु आ तो तमारा माटे पहेलं पगथियु छे. इजी तमारी उंमर नानी छे, ज्ञान नो खजानो अबूट छे तो तमो विनम्रतापूर्वक ज्ञानध्यानमा आगळ वधो अने जुना तात्त्विक ग्रंथोना पुनरुद्धार साथे नवीन ग्रंप नीरचना करी पू. शासनसम्राटश्रोना समुदायतुं गौरव वधारवा पूर्वक तमारा आत्मा श्रेय करो ते शुभ भावना. अशोकवि. ता. २२-३-८६ -कोसंवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 340