Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 8
________________ प्रस्तावना. .दिना संबंधमा जे पचतिथी प्रवर्त्तवामां आवे ने ते पञ्चति संबं धी विचार करीए. ___ श्री आनंदघनजी महाराज, श्री संजवनाथ नगवंतना स्तवनमा लखे जे के, परमात्मानी सेवनाना संबंधमां अन्नय, अष अने अखेद आत्रण गुणोनीतो प्रथम दरऊो आवश्यकता ने. समुदायिक जिनमंदिरमा आत्रणे गुणो सहित भक्तिनी प्रवृत्तिमां प्रवर्तनारो प्राणी, शांतिनी केटले दरो अपेक्षा राखेतोज श्रात्रणे गुणोना रक्षण सहित जिनेश्वर लगवंतनी यथार्थ रीते सेवना करी शके, ते बहुज ध्यानपूर्वक विचारवानुं . परिणाममा चंचलतां आवे ते लय, सेवामां अरुचि थाय ते घेष अने नक्तिमा प्रवृत्ति करतां श्राक लागे ते खेदः श्राप्रमाणे आत्रण शब्दना पारिजाषिक अर्थ वे. हवे विचारवानुं मात्र ए ले के सार्वजनिक जिनमंदिरमां सर्व नक्ति करनाराउने संपूर्ण स्वतंत्रताश्री नक्ति पूजनादि करवानो हक . बतांपि ते हकनो दरेकने एवी रीते उपलोग करवानो नश्री के, जेश्री बीजाने पोतानो हक भोगवतां विघ्नो आवे. आपणे लक्ति पूजन करतां बीजाने नक्ति पूजनमां विघ्न आवे तेपण एक जातनो मोटो अविवेक ने. सामान्य दृष्टांत ए के श्रीशत्रुजय तीर्थ उपर श्रीश्रादिनाथ परमात्मानी जल पूजा करतां समुदाय ज्यारे जल पूजा करनारो, होय , त्यारे दरेकने अनुलव थयो हशे के, मात्र अविवेकने लीधे केवी आशातना प्रसंगे प्रसंगे थइ जाय , तेश्री आवे प्रसंगे चित ने के, जेम रेलवे स्टेशन उपर टीकेट आपनारनी उफीस पासे पोलीसना नयने लीधे एक बीजाने विघ्न नहीं

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