Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 6
________________ प्रस्तावना. सात्मक थाने ते रसनी सख्यां साक्षर वर्गे नव, दशनी मानेली बे. दशनी संख्या ध्यानमां लइ बोलीए तो दशमध्येना नव रस पौगलिक ने मात्र एकज रस श्रात्मिक बे, अर्थात् आत्मस्वरूपने पुष्टि आपनार बे. नवरस पौगलिक बे तेना नाम. १ शृंगार रस, २ हास्य रस. ३ करुणारस, ४ वीररस, ए रौद्र रस, ६ जयानक रस, 9 बीजत्स्य रस अद्भूतरस ए वात्सल्य रस. नव रसना पदार्थो आत्माने पौलिक स्वरूपमांजलीनता करावे एम अनुभवथी सिद्ध थाय बे, तेथी ते तमाम रसो पौलिक बे. दशमो रस जे शांत रस बेने जे आत्माने श्रात्मस्वरूपमां लीनता करावे बे, तेने श्रात्म स्वरूपना अभिलाषी याने मुमुक् आत्मा रसाधिराज कहे छे, कारण के शांतरसमां आत्मा प्रवर्त्ते त्यारे मन कांटे रहे अर्थात् आत्मस्वरूपना विचारथी प्रच्युत यतुं नथी; अने उपरना नवे रसमांथी हरको रसमां आत्मा प्रवर्त्ततो होय, त्यारे मन आत्मस्वरूपथी भ्रष्ट थइ जाय बे. उपर प्रमाणे आत्मस्वरूपना अभिलाषी आत्माने मात्र शांत रसज उपादेय होवाथी हवे विचारवानुं मात्र एज बे के एवो जगतमां कयो पदार्थ बे के जे आत्माने शांतरसनी उत्कृष्ट स्थिति प्राप्त करावे? ते बाबतमां श्री भक्तामर स्तोत्रना कर्त्ता श्री मानतुंग सूरिनुं वचन प्रमाणरूप बे. श्रीभक्तामर स्तोत्रमां ए - पूज्यपाद लखे बे के यैः शांतराग रुचिभिः परमाणु निस्त्वं, निर्मापित त्रिभुवनैक ललामभूत ।

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