Book Title: Pratima Shatak Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 4
________________ प्रस्तावना. रनारी मोटी टीका रचेली ने ते टीकार्नु नाषांतर आग्रंथमां करवामां आवेलुं नथी, परंतु श्रीनावप्रजसूरिए पोताना शिष्य ज्योतीरत्नना हितनेवास्ते आ मूल ग्रंथ उपर जे लघु वृति करेली , तेनुंज नाषांतर आग्रंथमा करवामां आवेढुंचे. __ उपर मुजब प्रतिमाशतक नामनो ग्रंथ करवानो हेतु प्रदर्शित कर्याबाद प्रतिमा पूजननो हेतु तथा तेथी थता लालना विषय उपर विचार बताववा रजा लज बुं. प्रतिमावादीऊना विचारोमां पण अनेक तरेहनानेद , जेनेदोने लश्ने प्रतिमाना निषेध करनारा अनेक युक्ति बतावी प्रतिमानो निषेध करतां थकां पोताना मतमां चुस्त रही प्रतिमानो अंगीकार करता नथी, जेमके आर्यावर्त्तमां आर्यसमाजवाला इत्यादि अने पाश्चिमात्य देशमां प्रोटेस्टन्ट मतवाला इत्यादि. अन्यमतवाला प्रतिमां संबंधी विधि के निषेध शा शा कारणोथी करे ने ते बताववानुं आस्थले कांपण प्रयोजन नथी. आस्थले तो जैनदर्शनमां प्रदर्शित कर्या मुजब जिनेश्वर लगवंतनी प्रतिमा प्रतिपादन करवानो शुं हेतु अने तेथी शुं शुं लाल थाय ने तेज बताववानी जरूर बे. तेमां प्रथम जिनेश्वर जगवंतनी प्रतिमा प्रतिपादन करवाना जे जे हेतु बे, तेमा मुख्य हेतु ए बे के आजगतमां तीर्थकर लगवंते केवलझान प्राप्त को पीनव्य प्राणीउने मोक्ष प्राप्त कराववासारु जे उपदेशामृतनो वरसाद वरसावी निःसीम उपकार को जे, अने जे उपकारवाला उपदेशनी श्रेणी अत्यारसुधी जैनसिद्धांत रुपे वर्तमानना नव्य प्राणी उपर पण उपकार करती विद्यPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 158