Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 3
________________ प्रस्तावना. आग्रंथना तमाम काव्यमां हेतु-युक्ति अने दृष्टांतो एवा न्याय पुरःसर आपवामां आव्याजे के वांचनारने ग्रंथकारनी तार्किक शक्तिने माटे अत्यंत चमत्कार लागशे. सिद्धांतमा जे जे स्थले प्रतिमा अने जिनालय संबंधी अधिकार जे जे स्वरूपे ने तेनो यथार्थ नाव आग्रंथमां एवी रीते प्रदर्शित करेलो के तटस्थ वृत्तिथी अवलोकन करनारा न्यायबुद्धिवालाने प्रतिमा देषीनी मूढता साक्षात् जणाश् श्रावशे अने प्रतिमाने लोपनारा मात्र स्वकपोल कल्पित रचनाथीज प्रतिमानो निषेध करे , परंतु तेउना निषेधमा नथी सिद्धांतनो आधार के नथी न्याय युक्त हेतु, युक्ति के प्रमाणवाली समज शक्ति. __ग्रंथमां बहु सूक्ष्मदृष्टिथी प्रवेश करतां वांचनारने सेहेज लागशे के उपाध्यायजीना समयमां ज्यारे लुंपाकमतियो जेने वर्तमानमा ढुंढीश्रा मति कहेमामां आवे , तेना उपदेशको, प्रतिमा अने जिनालय करवामां हिंसा थाय , तेमज प्रतिमां पूजनमां पण हिंसा श्राय ने, एवा कुतर्कवाला उपदेशनी जालमां मंदबुद्धिवाला प्राणीने फसावता हशे अने तेउने जिनमदिर अने जिनप्रतिमाना वेषी बनावी सत्य मार्गथी व्रष्ट करता हशे, त्यारे अति करुणार्ड अंतःकरणश्री नावदया युक्त वृत्तिश्री, तेवा प्राणीउने सत्य मार्गमा लाववाने वास्ते ते महा उपकारी महास्माए श्राग्रंथनी रचना करी हशे. . • आग्रंथ उपर उपाध्यायजीए पोतेज ग्रंथना गूढ आशयते प्रदर्शित करनारी अने नैगमादि नयोना यथार्थ स्वरूपने समजनारा विधान वाचकवर्गने उपकारी तथा चमत्कार उत्पन्न क

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