Book Title: Pratima Shatak
Author(s): Yashovijay Maharaj, Bhavprabhsuri, Mulchand Nathubhai Vakil
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 2
________________ प्रस्तावना. न्याय विशारद अने तार्किक शिरोमणी श्रीमद् यशोविजय उपाध्यायजीए रचेला महान एकसो ग्रंथ मध्येनो आ प्रतिमा शतक नामनो ग्रंथ . श्राग्रंथमा उपाध्यायजी महाराजे ढुंपाक कुमतियोने हितशिक्षा आपवा सारु जैनसिद्धांतोने अनुसारे कटु औषधरुप, परिणामे लानदायक श्रनारा जे काव्योनी रचना करी उपकार कर्यो बे, ते उपकार अपरिमित ने. स्थूल बुहिवाला प्राणीउने श्राग्रंथ वाचतां प्रथम दर्शने एमज लागशे के, उपाध्यायजीए आग्रंथमा लुंपाक मतवालाने अर्थात् प्रतिमाना षीने सख्त वचनो कही, मात्र तेमनी निंदा करेली बे, परंतु तेज ज्यारे शास्त्र अध्ययन करतां करतां सूक्ष्मदृष्टि प्राप्त करी आ शतकना दरेक श्लोकना रहस्य याने मर्मने यथार्थ रीते समजशे, त्यारेज तेनालामां आवशे के, उपाध्यायजीए निःसीम परिश्रम लश् करेलो आ महान ग्रंथ तेउनी निंदा माटे करवामां आवेलो नथी, परंतु वक्र अने जड थ गयेला बालकने हितशिदा आपवासारु जेम अंतरंगमां अतिकरुणा धारण करी रहेलो पिता बहारथी कर्णने अति कठगेर लागे तेवा अने परिणामे हितकारक शब्दो कहे, तेनी जेम ते ढुंपाकमतियोने अनंताकाल सुधी आसंसारमा परिन्रमण करतां अटकाववासारु अने शुद्ध मार्गनुं ते अवलंबन करे एवी उपकारिक बुछिथी, सख्त वाणीरुपे परिणामे हितकारक श्राग्रंथ रचवामां श्रावेलो.

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