Book Title: Pratima Mandan Stavan Sangraha Author(s): Amarvijay Publisher: Chunilal Chagandas Shah View full book textPage 5
________________ जिनप्रतिमा स्थापनं दूसरा स्तवन. ( ५ ) वी। ते तो चित्त तुमारें नावें, तो तुमें दूरगति लेवीरें | कु.॥१॥ श्रावक अंबड प्रतिमा वंदें, जूओ सूत्र ऊवाइ | सूत्र अरथना अक्षर मरडो, ए मतियानें किम आईरे । कु. । ६ ॥ जंघाचारणा वैद्याचारण, प्रतिमावंदन चाल्या | अधिकार ए भगवती बोलें, थें मुरख सहु कालारे | कु. |७|| श्रावक आनंदने आलावें, प्रतिमा बंद करजोडी । उपासकें विचारी जोयो, थें कुमतें हियाथी छोडीरे । कु. ॥ ८ ॥ श्री जिनवरना चार निक्षेपा, मानें ते जगसाचा । थापनानें ऊथाप करें, बालबुद्धिनर काचारे । कु. १९ ॥ लबधि प्रयोजन अवधिआव इ, जिमगोचरीइं इरिया । शुद्ध संयम आराधक बोल्या, गुणमणिकेरा दरियारे | कु. | १० ॥ ऋषभादिक जिन 'नाम' लिई शिव, ठवणा, जिन आकारें । इव्य' जिना ते अतीत अनागत, भावें विहरता साररे । कु. ॥११॥ द्रव्य, थापना, जो नवी मानो, तो पोथी मतजालो । भावश्रुत सुखकारण बोलो, तो थाहरो मुखकालोरे | कु. | १२|| जिनमतिमा जिन कहि बोलावें, सूत्र सिद्धांत विचारों | जिनधर, सिद्धायतन, ना कहियां सत्यभाषी गणधारोरे | कु. । १३ ॥ १ भाग. पृ, १०७ से १२१ तक ।। २ नेत्रांजन १ भाग. पृष्ट. ११७ से १२१ तक | ३ ने० १भा. पृष्ट. १०८ में ॥ ४ जो स्थापना, और द्रव्य, निक्षेपको, न माने उनको जैनके सूत्रोंकोभी हाथमें लेना नही चाहियें, कारणकि सूत्रोंमें अक्षरों है सो - स्थापना रूप से है, और सर्व पुस्तक ' द्रव्यनिक्षेपका विषय रूपका है । ५ जिनघर, सिद्धायतन, यह दोनोंभी नाम, वीतरागका मंदिरके ही गणधर भगवानने कहे है | Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.comPage Navigation
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