Book Title: Pratima Mandan Stavan Sangraha
Author(s): Amarvijay
Publisher: Chunilal Chagandas Shah

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Page 21
________________ प्रतिमा मंडन रास. (२१) 'अंबड परिव्राजकतणो, आलावो श्री उवाई माहेंके। अन्य अहित ते परिहरु, वांदु जिन प्रतिमा चित लायके. कु.॥३६॥ सत्तम अंगे समाजने, आनंदनो आलावो जोइके । अन्य तीर्थ वांदु नहीं, सांपति जो जिन प्रतिमा होय के. कु.॥३६॥ 3वली उववाइने धुरे, चंपा नगरी वरणकी जोयके । जिनमंदिर पाडा कह्या, काह न मानो कुमति लोयके. । कु. ॥ ३७॥ साधु करे चेय तणो, वेयावच ते केहै भायके । ४पएहा वागरणे कह्यो, साचो अर्थ कहो समजायके । कु. ॥३८॥ अष्टापद गिरि उपरे, चैत्य करायो भरतें पुण्यने कामके । आवश्यक चूर्णी कयु, देवलसिंह निषद्या नामके । कु. ॥ ३९ ॥ यज्ञाता अंगे उपदिशी, जिनवर पूजा सतर प्रकारके । जीवाभिगम उपांगमें, तिहां पिण छे एहिज अधिकारके । कु.॥४०॥ श्रीव्यवहार सिद्धांतमें, प्रथम उदेशे कह्यो शुद्धके । श्रीजिन प्रतिमा आगले, आलोयणा लीजे मन श्रुद्धके ।कु.॥४१॥ विद्युनमाली देवता, कींधी प्रतिमा बोध निमित्तके । १ देखो नेत्रांजन प्रथम भाग पृष्ट. १०४ सें १०८ तक ।। २ देखो नेत्रांजन प्रथम भाग पृष्ट १०८ से १०९ तक ॥ ३ देखो इसका विचार-नेत्रांजन प्रथम भाग पृष्ट १०३ में १०४ ॥ ४ साधुभी चैत्य ( मंदिर ) की वैयावच करे, देखो प्रश्न व्याकरण || .. ५ ज्ञाता सूत्रमें-सतरभेदी पूजा करनेका उपदेश है ।। ६ प्रतिमाके आगे-साधुको दूषणकी आलोचना करनेका, व्यवहा र सूत्रमें कहा है ।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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