Book Title: Pratima Mandan Stavan Sangraha
Author(s): Amarvijay
Publisher: Chunilal Chagandas Shah

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Page 42
________________ (42) जिनप्रतिमाके निंदाकोंको शिक्षा. // अथ ढूंढक शिक्षा लघुस्तवन / / मत निंदो ढूंढक जिन मूरति / मत० ए टेक // . .. जिन मूरति निंदा करनेसें / नहीं लेखे होय तुम विरति / म० // 1 // कष्ट करो पिण ते सुकृतमें / मुको जलती तुम बत्ति / म० // 2 // प्रगट पाठका लोप करनको / मत करो तुम काठी छाती / म०॥३॥ जिनके बदले वीर श्रावकको / पूजावो न भूतादिक मूरति म०॥४॥ वरकी खोट दिखाके द्रौपदीको। पूनावो न कामकी मूरतिम०॥१॥ सुरगण इंद नरींद पूजी / ते निंदो कहीने अविरति? म० // 6 // मित्रकी मूरतिसें प्रेम जगावो / जिन मूरतिमें ही मूढमति ।म० // 7 // स्त्रीकी मूरतिसें काम जगावो / जिन मूरतिमें नहीं भक्तिमतिम०८) घोडा लाठीका नरम वचनसें / घोडा कहीने हटावे जति ।म० // 9 // पहाड पाषाण जिन मूरतिको केहतांलाज न तुमको भ्रष्ट मति 10 जिनके नामसें रोटी खावो / तीनकी निंद करो पापमति |म०॥११॥ भूतादिक पूजावोभावे / उहां न बतावो तुम हिंसा रति / म०१२॥ हिंसा दयाका भेद जाने विन / मत बनो तुम आतमघाति।म०।१३। तीर्थकरकी निंदा करतां / नष्ट होय निश्चेहि विभूति / म० // 14|| मुनि श्रावकका भेद न समजो। भ्रष्ट करो गृहीकी विरतिाम०॥१५॥ कही हित शिक्षा यह छोटी / नहीं ईर्षाकी करी है. मति ।म०॥१६॥ अमर कहें निंदा जिनवरकी। तीक्ष्ण धाराकी काति / म०॥ 17 / / // इति ढूंढक शिक्षा लघु स्तवनं समा / / - // इति मुनिराजश्री अमरविजय कृता श्री जिनपतिमा मंडन स्तधन संग्रहावली समाप्ता / / - - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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