Book Title: Pratima Mandan Stavan Sangraha
Author(s): Amarvijay
Publisher: Chunilal Chagandas Shah

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Page 24
________________ (२४) प्रतिमा मंडन रास. जिन प्रतिमा जिन देहरां, जेह करावे चतुर सुजाण के । लाभ अनंत गुणो हुवे, इम बोले आगमनी वाण के । कु. ॥१९॥ 'पूजे पितर करंडिये, पूजे देवीने क्षेत्रपालके । जिन प्रतिमा पूजे नहीं, ए तो लागे सबल जंजालके । कु.॥ ६०॥ चित्र लिखित जे पुतली, तेजोयां बाधे कामके। तो प्रतिमा जिनराजनी, देखतां शुभ परिणामके। कु. ॥६१ ॥ इम ठामे ठामे कह्यो, जिन प्रतिमा पूजा अधिकारके । जे माने नहीं मानवी, ते रुलसी संसार अपारके । कु. ॥६॥ आगम अर्थ सहुं कहे, तहत्ति करे जे आगम मांहिके । जिन प्रतिमा माने नहि, तेतो माहरी माने वांझके । कु. ।। ६३ ॥ अरथ आगमना ओलवें, नवा बनावे हिया जोरके । खोटाने थायें खरा, बेटो चोर तो वापही चोरके । कु ॥६४ ॥ मुन मन जिन प्रतिमा रमी, जिन प्रतिमा माहरे आधारके । सदहणा मुझ एहवी, जिन प्रतिमा जिनवर आकारके । कु. ।। ६५ ।। सतरे पचीसी सालमें, कियो रास जिन प्रतिमा अधिकारके । विनवे दास जिन राजनो, करो झटपट प्रभु पारके । कु. ॥ १६ ॥ . इतिसंपूर्ण ॥ .............................. १ हमारे ढूंढको तीर्यकरोंके भक्त होके, वीर भगवान के श्रावकोंकोभी-मिथ्यात्वी जे पितरादिक है,उनकी पूजा-दर रोज, करा. नेको उद्यत हुये है, उसमें-आरंभ नहीं, देखो सत्यार्थ पृष्ट. १२४ सें १२६ तक ॥ २ अदृश्यरूप यक्षादिक देवोकी प्रतिमा, बने । मात्र साक्षातरूप तीर्थकरोंकी-प्रतिमा, न बने ।। यह है तो मारी-मा, पिण सो तो वांझनी ? हमारे ढूंढक भाईयांकी अकल तो देखो। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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