Book Title: Pratima Mandan Stavan Sangraha
Author(s): Amarvijay
Publisher: Chunilal Chagandas Shah

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Page 36
________________ ( ३६) जिन प्रतिमाके निंदकोंको शिक्षा. एहवा ठिकाणे आविया, दूजाने आणो चाय लालरे । एहवा मिथ्या लेख मोकल्या, देश देशांतरमांय लालरे । मच्यो।।३।। तीन कर्ण तीन जोगसुं, भलो न सरदे मुनिरायरे । छकायारा आरंभथी, उत्तम गति नहीं थाय लालरे । मच्यो ॥४॥ चतुर विचारो चित्तमां, कीजो निर्णय एह लालरे । तत्त्वातत्व विचारथी, कुगुरुने दीजो छह लालरे । मच्यो ॥ ५ ॥ कुंदन नाहटारी ए विनती, मुणजो सारा लोक लालरे । दया पालो छकायनी, तो पामो बंछित थोक लालरे । मच्यो ॥६॥ साल पेंसठ ओगणीसकी. ज्येष्ठ शुक्ल मजार लालरे । धर्मध्यान कर शोभतो,अमरावती शहर गुलजार लालरे मच्यो ॥७॥ ॥ अथ जिन प्रतिमाके निंदक, ढूंढक शिक्षा बरोशी ॥ कका कर्म तणी गति देखो, ढूंढक नाम धराया है। जिनके नामसें रोटोखावे, तिनका नाम भूलाया है ॥ जिन मारगका नाम विसारी, साध मारग निपजाया है। सीखमान सद्गुरुकी ढूंढक, विरथा जनम गमाया है ||१|| ए टेक।। खख्खा खोजकर जैनधर्मकी, मारग तुम नहीं पाया है । वासी विद्दलखाके तुमने, खरा धरम डुबाया है ।। अंदरका मुख खुल्ला रखके, उपर पाटा खांच्या है। सीख० ॥२|| गग्गा ग्लिचपणाकर गाढा, जैन धरम लजवाया है। सूत्र निशीथ उद्देशे चौथे, अशुची दंड गवाया है ॥ .. गपड सपड कर जूठ लगावे, सत्यसेती गभराया है। सीख० ॥३॥ घध्या घरकी खबर करो तुम, क्या घर बतलाया है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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