Book Title: Pratima Mandan Stavan Sangraha
Author(s): Amarvijay
Publisher: Chunilal Chagandas Shah
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तीर्थकरादिक निंदक, माधव ढूंढक.
पुनः पृष्ट. ३० में-लावणी बहर खडी ।। - मणी मुकरको जो न पिछाने, वो कैसा जोहरी प्रधान । जो शठ जड चेतन नहीं जाने, ताको किम कहियै मतिमान ।। टेर । जडमें चेतन भाव विचारे, चेतन भाव धरें। प्रगट यही मिथ्यात्व मूढ वो, भीम भवोदधि केम तरें ।। मुक्त गये भगवंत तिन्होंका, फिर आद्यानन मुख उचरे । करें विसर्जन पुन प्रभुजीका, यह अद्भुत अन्याय करें । दोऊ विध अपमान प्रभुका, करें कहो कैसें अज्ञान. जो शठ.॥१॥ श्रुत इंद्री जाके नहीं ताको, नाद बजाय सुनावें गान । चक्षु नहीं नाटक दिखलावें, हाथ नचाय तोड करतान । जाके घ्राण न ताको मूरख, पुष्प चढावें बे परमान । रसना जाके मुखमें नाहीं, ताको क्यों चांहें पकवान । फोगट भ्रम भक्तीमें हिंसा, करें वो कैसे हैं इन्सान. जो० ॥ २ ॥ जव गोधूम चना आदिक सव, धान्य सचित जिनराज मने । .. प्रगट लिखा है पाठ सूत्र, सामायिक मांहीं बियकमने । दग्ध अन्न अंकुर नहीं देवै, देखा है परतक्षपणे । तो भी शठ हठसे बतलावे, अचिन कुहेतू लगा घणे । अभिनिवेश उन्मत्त अज्ञको, आवे नहीं श्रुद्ध श्रद्धान. जो. ॥ ३ ॥
१ जिन पूजन छुडवायके, पितरादिक पूजाते है उनको, मणि काचकी खबर नहीं है कि हमको ? विचार करो?॥
२ प्रतिष्टादिक कार्यों आव्हान, और विसर्जन, इंद्रादिक देवताओंका किया जाता है । इस ढूंढकको खबर नहीं होनेसें, भगवानका लिखमारा है ? गुरु विना ज्ञान कहांसे होगा ? ॥
- ३ यह ढूंढक-हमको उन्मत्त, और अज्ञान-ठहराता है। परंतु पहिलेसें ख्याल करोकि, ढूंढनी पार्वतीजी—यक्षादिक, पितरादिक
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