Book Title: Pratima Mandan Stavan Sangraha
Author(s): Amarvijay
Publisher: Chunilal Chagandas Shah

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Page 12
________________ ( १२ ) मिथ्यात्व खंडन - ६ स्वाध्याय. देव वंदननी टीकाकारी, हरिभद्र सूरिराया । च्यार थुइ करी देवां दिजें, वृद्ध वचन सुखदायारे | भाव | १५ || वैयावच शांति समाधिना करता, सुर समकित सुखकारी । प्रगट पाठ टीका निर धारयों, हरिभद्र सूरि गणधारीरे | भवि । १६ || वारें अधिकारें चैत्य वंदननो, न क्यूं कहो हवें तेह | टीकाकार थुइ कही छे, सुर सम्यक्त्व गुण गेहरे | भवि । १७ ।। खेत्र देव शय्यातरादिक, काउसग कह्यो हरिभद्रं । निर्युक्तिमें मगट पाठ ए, देखो करी मन भद्ररे | भवि । १८ ॥ श्रावक सूत्र को वंदे तूं, पूरवघर मुनिराय । बोध समाधि कारण वांछे, सुर समकित सुखदायरे । भवि । १९ ॥ वैशाला नगरीनो विनाशक, चैत्य शुभनो घाती । कुलवालुओ गुरुनो द्रोही, सातमी नरक संघातीरे । भवि | २० || इत्यादिक अधिकार घणेरा, निरपक्षी थई देखो । दृष्टि रागनें दुर उवेखी, सुख कारण सुविवेकरे | भवि | २१ || पंडितराय शिरोमणि कहियें, अन्नविजय गुरुराय | जसविजय गुरु सुपसाये, परमानंद सुखदायरें | भावे | २२|| इति मिथ्यात्व तिमिर निवारण स्वाध्याय ५ मी संपूर्ण. धन. १ || श्री संप्रति राजाका ६ स्तवन । राग आशावरी । धन धन समति साधो राजा, जेणे कीधां उत्तम कामरे । सवालाख प्रासाद करावी, कलियुग राख्युं नाम रे ॥ वीर संवत्सर संवत् बीजे, तेरोत्तर रविवार रे। महाशुदि आठमी बिंत्र भरावी, सफल कियो आवतार रे ।। धन. २ श्रीपद्म प्रभु मूरती थापी, सकल तीरथ शणगार रे । कलियुग कल्पतरु ए प्रगट्यो, वंछित फल दातार रे || उपासरा वे हजार कराव्या, दानशाला शय सात रे || धन. ३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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