Book Title: Pratima Mandan Stavan Sangraha
Author(s): Amarvijay
Publisher: Chunilal Chagandas Shah

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Page 17
________________ प्रतिमा मंडन रोस. ( १७ ) चारण मुनिवर प्रतिमा वंदनको, रुचक नंदीश्वर जावत है। जैनी | ३ || सूरयाम देवको मित्रदेवने हितसुख मोक्ष बताया है। जैनी । ४ ॥ आद्र कुमारे प्रतिमा देखी ते, जाति स्मरण पाया है । जैनी । ५ ॥ जीवाभिगममें लवण सुठिये, श्री जिनराजको पूज्या है । जैनी ॥ ६ ॥ ठाणांग सूत्रमें चार निक्षेपा, सत्यरूप बतलाया है । जैनी । ७ ॥ लाक कहै जिन प्रतिमा पूजें, जन्म मरण मिट जावत है। जैनी । ता इति ९ स्तवन ॥ ॥ अथ जिन प्रतिमा स्थापन रास लिख्यते || ॥ मुनिराजश्री वल्लभविजयजी की तरफसें मिल्या हुवा || सूय देवी हिडे घरी, सदगुरु वयण रयण चित चारके । रास भणुं रलियामनो, सूत्रे जिन प्रतिमा अधिकारके । कुमति कदाग्रह छोड द्यो । ए आंकणी ॥ मन हठ मकरो मूढ गमारके, हठ मिथ्या न बखानिये । मिथ्या तें बांधे संसारके । कुं मति ॥ १ ॥ ॥ २ ॥ ॥ ३ ॥ कुडो हठ ताणे जिके, अम्हे कहांछां तेहिज साचके । ते अधरमी आत्मा, काच समान गिणें ते पांचके | कु. कुमति कुटिल कदाग्रही, साच न राचें निगुण निटोलके । परम परागम बाहिरा, स्युं जाणे ते सूत्रनो बोलके । कु. ॥ ४ ॥ गुरुकुल वाससें जिके, ते कहिये जान प्रवणिके । शुद्ध संयम तेहनो पले, आगम वयण तणो रस लीनके । कु. ॥५॥ एक वचन जे सूत्रनो, उथापे ते बांधे भवनो बंधके । पाडे तेहनो स्युं होस्, उथापे जे सारो खंधके । कु. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ॥ ६ ॥ www.umaragyanbhandar.com

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