Book Title: Pratima Mandan Stavan Sangraha
Author(s): Amarvijay
Publisher: Chunilal Chagandas Shah

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Page 14
________________ (१४) ॥ जिन प्रतिमान विषये ८ स्तवन ।। पूजा छे मुक्तिनो पंथ, नित नित भाषे इस भगवंत । सहि एक नरक बिना निरधार, प्रतिमा छे त्रिभुवनमा सार ॥ ६ सत्तर अठाणु आषाढी बीज, उज्जल कीq छे बोध बीज । इम कहे उदय रतन उवज्जाय, प्रेमे पूजो प्रभुना पाय ॥ ७ इति जिन प्रतिमा ७ स्तवन । मिन प्रतिमा विपये ८ सवन.॥ चेतउरे चित प्राणी, ए देशी ।। धरण नमुं श्री वीरनारे, धरि मन भाव अभंग। पामी जे जसु सेवी, ज्ञान दर्शनरे चारित्र गुण चंगकि ॥ १ मुणज्योरे सु विचारी,तुम्हे तनि ज्योरे मन हूती शंककि, सु ए टेक। जिन प्रतिमा जिन सारखीरे, भाषी श्री जिनराज । समकित पर चित्त सरदहें, भवजलधिरे तरवाने काज कि ॥ सु०२ जेहनुं नाम जपीये सदारे, धरीये जेहनी आण । मूरती तास उथापता, महु करणीरे थाई अपामणकि ॥ सु० ३ वंदें पूजे भाव सुरे, समकिती अरिहंत देव । तिम अरिहंतना विंबनी, मन मुद्धरे नित सार सेवकि ॥ सु०४ १ नाम, २ ठवण, ३ द्रव्य, ४ भाव सुंरे, श्री अनुयोग दुवार। चार निक्षेपा जिन तणा,वंदें पूजेरे ध्यावे समकित धारकि।मु०५ भाव पूजा कही साधुनेरे, श्रावकने द्रव्य भाव । धर्म समकित जिन सेवमें, शिव सुखनोरे एही उपावकि । मु०६ दान शील तप दोहिलोरे, अहनिशि ए नत्री थाय । भावें जिन बिंब पूजतां,भव भवनोरे सहु पातक जायकि ॥ सु०७ १ एक नरक का स्थान छोडकरके, और सर्व जगें पर, शा. श्रते, और अशाश्वते, जिनेश्वर देवके चित्र (प्रतिमा विराजमान हे उनका पाठभी जैन सिद्धांतोंमें जगें जगे पर विद्यमान पणे है।। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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