Book Title: Pratima Mandan Stavan Sangraha
Author(s): Amarvijay
Publisher: Chunilal Chagandas Shah

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ (१०) जिनप्रतिमा स्थापन ५ स्तवन. रे । भ । श्री । ५॥ पांचमा अंगें जिन प्रतिमानो, प्रगटपणे अ. धिकार । मुरयाभ सुर जिनवर पूज्या, रायपसेणी मजाररे । भ । श्री। ६ ॥ दशमें अंगे अहिंसा दाखी, जिन पूजा जिनराज । ए वा आगम अरथमरोडी, करिये किम अकाजरे । भ । श्री।७।। समकित धारी सतीय द्रौपदी, जिन पूज्या मनरंगें । जो जो एहनो अरथ विचारी, छठे ज्ञाता अंगेरे । भ । श्री। ८॥ विजय सुरें जिम जिनवर पूजा, कीधी चित्त थिर राखी । द्रव्यभाव बिहुं भेदें कीनी, जीवाभिगमते साखीरे । भ । श्री। ९॥ इत्यादिक बहु आगम साखें, कोई शंका मति करजो । जिन प्रतिमा देखी नित नवलो, प्रेम घणो चित्त घरजोरे । भ । श्री। १० ॥ चिंतामणि प्रभु पास पसायें, सरधा होजो सवाई । श्री जिन लाभ मुगुरु उपदेशे, श्री जिनचंद्र साईरे. भ. श्री. ११ ।। इति चिंतामाणि पार्थ ४ सवन. ॥ अथ मिथ्यात्व खंडन स्वाध्याय ५ लिख्यते. .. दूहा--पूर्वाचारज सम नहीं, तारण तरण जहाज । ते गुरुपद सेवा विना, सबही काज अकाज । १ ॥ टीकाकार विशेष जे, नियुक्ति करतार । भाष्य अवचुरी चूर्णियी,सूत्र साथ मन धार । २ ॥ यही अरथ परंपरा, जाणग जे मुनिराज । सूत्र चौराशी वर्णव्या, भवियण तारक जान ! ३ ॥ निजमति करता कल्पना, मिथ्यामति केई जीव । कुमनि रचीने भोलवे, नरके करसें रीव । ४ ॥ बाल . अजाणग जीवडा, मूरखने मति हीन । नुगराने गुरु मानसें, थास्य दुखिया दीन । ५॥ ____ढाल---प्रणमी श्री गुरुना पदपंकज, शिखामण कई सारी । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42