Book Title: Pratima Mandan Stavan Sangraha
Author(s): Amarvijay
Publisher: Chunilal Chagandas Shah

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ मिथ्यात्व खंडन-५ स्वाध्यायं. (११) समकित दृष्टि जीवने कानें, सुणज्यो नरने नारी । भवियण समजो हृदय मजारी। १ । ए टेक ॥ अत्तागम अरिहंतने होवें, अणंतर श्रुत गणधार । आचारजयी पूर्व परंपर, सो सदहें ते अणगाररे । भवियण समजो हृदय मजारी । २ ॥ भगवई पंचम अंगे भाख्यो, श्री जिनवीर जिनेस । भेष धरीने अवलो भाखे, करी कुलिंगनो वेसरे । भवि । ३ ॥ बाहार व्यवहारे परिग्रह त्यागी, बगलानी परें जेह । सूत्रनो अर्थ जे अवलो मरडे, विमा रष्टि कह्यो तेह रे । भवि । ४ ॥ आचारज ऊबजाय तणो जे, कुल गछनो परिहार सेहना अवरणवाद लवंतो, होसें अनंत संसाररे। भवि । ५॥ महा मोहनी कर्मनो बंधक, समवायांगे भाष्यो। श्रुतदायक गुरुने हेलवतो, अ. नंत संसारी ते दाख्योरे । भवि । ६ ॥ तप किरिया बहु विधनी कीधी, आगम अवलो बोल्यो । देवालविष ते थयो ' जमाली' पंचम अंगे खोल्योरे । भवि । ७॥ ज्ञाता अंगे सेलग मुरिवर, पासथ्था यया जेह । पंथक मुनिवर नित नित नमता, श्रुतदायक गुण गेहरे । भवि । ८।कुलगण संघतणी वैयावच, करें निरजरा काजें। दशमें अंगे जिनवर भाखें, करें चैत्यनी साहजेरे । भवि। ९॥ आ. रंभ परिग्रहना परिहारी, किरिया कठोरने धारें। ज्ञान विराधक मिथ्या दृष्टि, लहें नहीं भव पाररे । भवि । १०॥ भगवती अंगे पंचम शतके, गौतम गणधर साखें । समकित विन किरिया नहीं लेखें, वीर जिणंद इम भाषेरे । भवि । ११ ॥ पूर्व परंपरा आगम साखें, सदहणाकरो श्रृद्धी । परत संसारी तेहनें कहिये, गुण गृहवा जस बुद्धिरे । भवि । १२ ॥ नव सातना भेद छे बहुला, तेहना भंग न जाणे । कदाग्रहथी करी कल्पना, हठ मिथ्यात्व वखाणेरे । भवि । १३ ॥ सम्यक् दृष्टि देवतणा जे, अवरण वाद न कहिये । ठाणा अंगे इणिपरी भाख्यो, दुरलभ बोधि लहियेरे । भवि । १४ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42