Book Title: Pratikraman Sutra Sachitra
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 23
________________ 2320 २ ३ २ १ १ 322 ३ २ २ 3 २ १ २ • २-३-४ गाथा बोलते समय गाथा के प्रत्येक चरण के अनुसार चित्र में दिये गये क्रम से भगवान को प्रत्येक चरण के उच्चारण के साथ देखना है, व प्रत्येक के चरणकमल में वंदना करते चलना है । ५वीं गाथा में भी 'चउवीसं पि' में 'पि' शब्द से २४ के साथ और भी सब देश-काल के भगवान स्तुत्य एवं निर्मल एवं अक्षय देखना है तथा उनका प्रभाव अपने पर पडे ऐसी चाहना करनी हैं । • ६-७ गाथा, यहाँ ये सब भगवान का (तीनों जगत में) कीर्तन-वंदन-पूजन हुआ है, एवं मन्त्रसिद्ध विद्या-सिद्ध आदि पुरूषों से भी वे श्रेष्ठ शुद्ध-बुद्ध-मुक्त सिद्ध है ऐसा देखना है । (आरुग्ग....) उनके आगे मोक्षार्थ वीतरागता तक के बोधिलाभ (जैनधर्म प्राप्ति) व श्रेष्ठ भावसमाधि वे दें ऐसी प्रार्थना करनी है। अंत में (चंदेसु) वे क्रोडो चंद्र-सूर्य-सागरों से अधिक निर्मल प्रकाशक-गंभीर एवं सिद्ध है वैसा देखकर वे मोक्ष दें ऐसी प्रार्थना करनी है । अन्नत्थ ऊससिएणं नीससिएणं खासिएणं छीएणं जंभाइएणं उड्डएणं वाय-निसग्गेणं भमलीए पित्त-मुच्छाए सुहुमेहि अंग-संचालेहिं सुहुमेहिं खेल-संचालेहिं सुहुमेहिं दिट्ठि-संचालेहिं एवमाइएहिं आगारेहिं अभग्गो अविराहिओ हुज्ज मे काउस्सग्गो, जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि ताव, कायं ठाणेणं मोणेणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि । अन्नत्थ सूत्र अर्थ : सिवा श्वास लेना, श्वास छोडना खाँसी आना, छींक आना, जम्हाई आना, डकार आना, अधोवायु छूटना, चक्कर आना, पित्त-विकार से मूर्च्छा आना, सूक्ष्म अंग-संचार होना करेमि भंते ! सामाइयं । सावज्जं जोगं पच्चक्खामि । जाव नियमं पज्जुवासामि, दुविहं तिविहेणं मणेणं वायाए कारणं न करेमि न कारवेमि तस्स भंते ! पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि सूक्ष्म कफसंचार होना, सूक्ष्म दृष्टि-संचार होना इत्यादि अपवाद के (सिवा), मुझे कायोत्सर्ग (काया के त्याग से युक्त ध्यान) हो, वह भी भग्न नहीं, खण्डित नहीं ऐसा कायोत्सर्ग हो । जहाँ तक (नमो अरिहंताणं बोल) अरिहंत भगवंतों को नमस्कार करने द्वारा (कायोत्सर्ग) न पारूं (पूर्ण कर छोडूं), वहां तक स्थिरता, मौन व ध्यान रखकर अपनी काया को वोसिराता हूं (काया को मौन व ध्यान के साथ खडी अवस्था में छोड देता हूं) । करेमि भंते (सामायिक) सूत्र अर्थ - हे भगवंत ! मैं सामायिक करता हूं । पापवाली प्रवृत्ति का प्रतिज्ञाबद्ध त्याग करता हूं | (अतः) जब तक मैं (दो घडी के) नियम का सेवन करूं, (तब तक) त्रिविध से द्विविध (यानी) मनसे, वचन से, काया से, (सावद्य प्रवृत्ति) न करूंगा, न कराऊंगा । हे भगवंत ! (अब तक किये) सावद्य का प्रतिक्रमण करता हूं, (गुरु समक्ष) गर्हा करता हूं, (स्वयं ही) निंदा करता हूँ, (ऐसी सावद्य-भाववाली) आत्मा का त्याग करता हूं समझ - सामायिक यह एक ऐसा अनुष्ठान है जिसमें 'समाय' समभाव का आय (लाभ) होता है। यह सामायिक (देखीए पृष्ठ नं. १७ पर) १६

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