Book Title: Pratikraman Sutra Sachitra Author(s): Bhuvanbhanusuri Publisher: Divya Darshan TrustPage 82
________________ छक्कायसमारंभे, छकाय के जीवों की हिंसायुक्त प्रवृत्ति करते हुए तथा अपने लिए, पयणे अ पयावणे अ जे दोसा । दूसरों के लिए और उभय के लिए (भोजन) रांधते हुए, रंधाते हुए (या अत्तट्ठा य परट्ठा, अनुमोदन में) जो कर्म बंधे हों, उनकी मैं निंदा करता हुँ। उभयट्ठा चेव तं निंदे ||७|| पंचण्ह मणुव्वयाणं, पांच अणुव्रत (स्थूल प्राणातिपात विरमण आदि) तीन गुणव्रत (दिक्गुणवयाणं च तिण्हमइआरे । परिमाण व्रतादि), चार शिक्षाव्रतों (सामायिकादि) (तप संलेखणा व सिक्खाणं च चउण्हं, सम्यक्त्वादि के) विषय में दिवस संबंधी छोटे बड़े जो अतिचार लगे पडिक्कमे देसि सव्वं ।।८।। हों, उन सबसे मैं निवृत्त होता हुँ । पढमे अणुब्बयम्मि प्रथम अणुव्रत-स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत के विषय में पांच अतिचारथूलग-पाणाइवाय-विरईओ । प्रमाद के परवश होकर या रागादि अप्रशस्त (अशुभ) भावसेआयरियमप्पसत्ये, १) मार मारना २) रस्सी आदि से बंधन बांधना ३) अंगछेदन ४) इत्थ पमायप्पसंगेणं ॥९॥ ज्यादा भार रखना और ५) भूखा-प्यासा रखना, प्रथम व्रत के इन पांच वह-बंध-छविच्छेए, अतिचारों से दिनभर में जो कर्म बंधे हों उनका मैं प्रतिक्रमण करता अइभारे भत्तपाणवुच्छेए। हूँ ।। ९-१०) पढमवयस्सइआरे, पडिक्कमे देसि सव्वं ||१०|| बीए अणुव्वयम्मि, दूसरे अणुव्रत-झूठ बोलने से अटकने रूप स्थूल मृषावाद विरमण व्रत पस्थूिलग-अलियवयण-विरईओ । के विषय में पांच अतिचार-प्रमाद से अथवा रागादि अप्रशस्त भावों का आयरियमप्पसत्थे, उदय होने से- १) बिना विचारे किसी पर दोषारोपण करना २) कोई इत्थ पमायप्पसंगेणं ||११|| मनुष्य गुप्त बात करते हों उन्हें देखकर मनमाना अनुमान लगाना सहसा-रहस्स-दारे, ३) अपनी पत्नी (या पति) की गुप्त बात बाहर प्रकाशित करना ४) मोसुवएसे अ कूडलेहे अ । मिथ्या उपदेश अथवा झूठी सलाह देना तथा ५) झूठी बात लिखना, बीयवयस्स-इआरे, इन पांच अतिचारों से दिनभर में बंधे हुए अशुभ कर्म की मैं शुद्धि करता पडिक्कमे देसिअं सवं ||१२|| हूं || ११-१२) तइए अणुव्वयम्मि, तीसरे स्थूल अदत्तादान विरमण अणुव्रत के विषय में पांच अतिचारथूलग-परदबहरण-विरईओ। प्रमाद से या क्रोधादि अप्रशस्त भावों से १) चोर द्वारा लाई हुइ वस्तु आयरियमप्पसत्ये, स्वीकारना २) चोरी करने का उत्तेजन मिले ऐसा वचनप्रयोग करना ३) इत्थ पमायप्पसंगणं ||१३|| माल में मिलावट करना ४) राज्य के नियमों से विरुद्ध गमन करना तेनाहड-प्पओगे, और ५) झूठे तौल तथा माप का उपयोग करना...अन्य के पदार्थों का तप्पडिरूवे विरूद्धगमणे अ | हरण करने से अटकनेरूप अदत्तादान विरमण व्रत के अतिचारों द्वारा कूडतुल-कूडमाणे, दिनभर में लगे हुए कर्मों की मैं शुद्धि करता हूं ।। १३-१४) पडिक्कमे देसि सबं ||१४|| (अनुसंधान पृष्ठ ८५ पर) Zducation in viva 4 www.jainelibrary.org.Page Navigation
1 ... 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118