Book Title: Pratikraman Sutra Sachitra Author(s): Bhuvanbhanusuri Publisher: Divya Darshan TrustPage 84
________________ गमणस्स य परिमाणे, दिशा परिमाण नामक प्रथम गुणव्रत के विषय में १) ऊर्ध्वदिशामें जाने का दिसासु उड्ढ अहे अ तिरिअं च । प्रमाण लाँघने से २) अधोदिशा में जाने का प्रमाण लाँघने से ३) तिर्यग् अर्थात् वुड्ढि सइ-अंतरद्धा, दिशा और विदिशा में जाने का प्रमाण लाँघनेसे ४) एक दिशा का प्रमाण कम पढमंमि गुणव्वए निंदे ||१९|| करके दूसरी दिशा का प्रमाण बढाने से और ५) दिशा का प्रमाण भूल जाने से पहले गुणव्रत में जो अतिचार लगे हों, उनकी मैं निन्दा करता हूँ ||१९|| मज्जम्मि अ मंसम्मि अ, भोगोपभोग परिमाण नामक दूसरे गुणव्रत में मदिरा, मांस ('अ' शब्द से पुप्फे अ फले अ गंधमल्ले अ । २२ अभक्ष्य, ३२ अनंतकाय, रात्रिभोजनादि) पुष्प, फल, सुगंधी द्रव्य , उवभोग-परीभोगे, पुष्पमाला आदि (एक बार ही जिसका उपयोग हो सकता है वह) उपभोग व बीअम्मि गुणव्वए निंदे ||२०|| (बारंबार जिसका उपयोग हो सकता है वह) परिभोग संबंधी लगे हुए अतिचारों की मैं निन्दा करता हूँ ।।२०।। सचित्ते पडिबद्ध, १) निश्चित किए हुए प्रमाण से अधिक या त्याग किये हुए सचित्त आहार का भक्षण अपोल-दुप्पोलियं च आहारे । २) सचित्तसे संयुक्त आहार का भक्षण ३) अपक्व आहार का भक्षण ४) कच्चेतुच्छोसहि-भक्खणया, पडिक्कमे देसि सव्वं ।।२१।। पक्के पकाओ हुए आहार का भक्षण ५) जिसमें खाने का भाग कम व फेंकने का भाग अधिक हो वैसी तुच्छ औषधिका भक्षण, सातवें व्रत के इन पाँच अतिचार से दिवस संबंधी जो कर्मों की अशुद्धि लगी हो उनकी मैं शुद्धि करता हुँ ।।२१।। इंगाली-वण-साडी सातवाँ भोगोपभोग परिमाण गुणव्रत दो प्रकार का है-भोगसे व कर्मसे । उसमें भाडी-फोडीसु वज्जए कम्मं । वाणिज्जं चेव दंत कर्मसे पन्द्रह कर्मादान (अति हिंसक प्रवृत्तिवाले व्यापार) श्रावक को छोड़ने लक्ख-रस-केस-विस-विसयं ।।२शा चाहिए । वे इस प्रकार के हैं | १) अंगार कर्म-इंटका निभाड़ा, कुंभार-लोहार एवं खु जंतपीलण आदि, जिसमें अग्निका अधिक काम पडता हो ऐसा काम | २) वन कर्मकम्म निल्लंछणं च दव-दाणं । जंगल काटना आदि जिसमें वनस्पति का अधिक समारंभ हो, ऐसा कार्य । सर-दह-तलाय सोसं, ३) शकट कर्म-गाडी, मोटर, खटारा आदि वाहन बनाने का कार्य । ४) भाटक असइपोस च वज्जिज्जा ||२३|| कर्म-वाहन या पशुओं को किराये पर चलाने का कार्य ५) स्फोटक कर्म-पृथ्वी तथा पत्थर फोडने का कार्य । ६) दन्त वाणिज्य-हाथीदांत, पशु-पक्षी के अंगोपांग से तैयार हुई वस्तुओं को बेचना । ७) लाक्षा वाणिज्य-लाख, नील, साबु, हरताल आदि का व्यापार करना । ८) रस-वाणिज्य-महाविगइ तथा दूध, दही, घी, तैलादि का व्यापार | ९) केशवाणिज्य-दो पाँव (दास-दासी वगैरह) तथा चार पाँववाले जीवों का व्यापार | १०) विषवाणिज्य-जहर और जहरीले पदार्थों तथा हिंसक शस्त्रों का व्यापार | ११) यंत्रपीलनकर्मअनेकविध यन्त्र चक्की, घाणी आदि चलाना, अन्न तथा बीज पीसने का कार्य । १२) निर्लाञ्छनकर्म-पशुओं का नाक-कान छेदना, काटना, आँकना, डाम लगाना व गलाने का कार्य | १३) दवदानकर्म-जंगलों को जलाकर कोयले बनाना । १४) जलशोषण कर्म-सरोवर, कुआँ, स्त्रोत तथा तालाबादि को सुखाने का कार्य । १५) असतीपोषणकर्म-कुल्टा आदि व्यभिचारी स्त्रीयाँ तथा पशुओं के खेल करवाना, बेचना, हिंसक पशुओं के पोषण का कार्य । ये सब अतिहिंसक व अतिक्रूर कार्यों का अवश्यमेव त्याग करना चाहिए ||२२||२३|| चित्र (समझ-) गाथा १९ : उर्ध्वगमनके लिए हवाई विमान, अधोगमनके लिए सबमरीन या डाइवर्स तथा तिर्छागमनके लिए गाड़ी मोटर आदि बताये गये हैं । गाथा २०-२१ : २०-२१ : २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय, चार महाविगई, रात्रिभोजन आदिमें से कई अभक्ष्य द्रव्य व अतिभोगासक्ति के प्रतीकरूप पुष्प, फल आदि दिखाये हैं | गाथा २२-२३ : महाहिंसक, महाआरंभ समारंभ के कारक पंद्रह कर्मादान के धंधे में से कितने की रूपरेखा : अंगार कर्म : ईंट का भट्ठा, स्टील फेक्टरीकी भट्ठी, वन कर्म : लकड़े (वृक्ष) काटने का काँन्ट्रेक्ट देना, शकटकर्म : मोटर मेन्युफेक्चरींग...| भाटक कर्म : ट्रान्सपोर्टेशन की ट्रक, टेम्पो आदि स्फोटक कर्म : सुरंग फोड़ना, रस्ता बनाने के लिए पर्वतको बीचमें से तोडकर जगह करना । दंत वाणिज्य : हाथीदांत का ढ़ेर, लक्ख वाणिज्य : साबुनकी दुकान, रसवाणिज्य : शराबकी बोतलों का व्यापार, केश वाणिज्य : केश तथा केशयुक्त जीवों को बेचना-यहाँ सुंदर रोमवाले पशुओं की बिक्री बतायी है । विष वाणिज्य : बेगॉन स्प्रे, टिक-२० आदि तथा तलवार बंदूक आदि शस्त्रों। यंत्रपीलन कर्म : चक्की, इख का संचा, निर्लाछनकर्म-गाय को डाम देना, दव-दानकर्म : वन को आग लगाना, सरद्रह-तड़ाग शोषण कर्म : तालाब, सरोवर आदि का पानी मशीनसे खाली किया जा रहा है । असती पोषण : नीच कृत्य करने के लिए मनुष्यों को बेचनेवाला दलाल । |७७1 nelibraryPage Navigation
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