Book Title: Pratikraman Sutra Sachitra
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 10
________________ नवकार- नवपद चित्र- विवरण श्री योगशास्त्र ग्रंथ में कलिकालसर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्य ने बताया है कि अपने हृदय को एक कमल मानकर बिचकी कर्णिका में 'नमो अरिहंताणं' पद और आजूबाजू की आठ पंखुडियों में बाकी के 'नमो सिद्धाणं' आदि आठ पदों का ध्यान-जप १०८ बार करने से एक उपवास का फल मिलता है। नवकार के अक्षरों का भी इतना बड़ा महत्व है । यह पदस्थ ध्यान है । अब ऐसी शिकायत होती है कि (१) मन इस में स्थिर नहीं रहता है और अन्यान्य विचार आ जाते है, एवं (२) स्थिर रहे तब भी दिल में भावोल्लास वर्धमान = बढता रहेता नहीं। इन दो शिकायतों के निवारणार्थ उपाय यह है कि पहले पांच पदों के अलावा पांचों परमेष्ठियों को इस प्रकार अपनी अपनी मुद्रा (Pose) में व अनंत संख्या में उसी कमल में या चक्रमें देखा जाए : (१) अरिहंत भगवान की मुद्रा यह कि वे समवसरण पर छत्र-भामंडलयुक्त बिराजमान है, इन्द्र चँवर ढालते है, ऊपर सारे समवसरण को छाया देता हुआ अशोकवृक्ष है, नीचे पुष्पवृष्टि गिरती है, तीसरे किले पर पर्षदा में देव-मनुष्य है व दूसरे पर पशु आये है, गगन में देवदुन्दुभि व दिव्यध्वनि वाली बँसरी बज रही है, एवं प्रभु धर्मोपदेश देते है। वैसे अनन्त समवसरण व अनंत अरिहंत प्रभु को कर्णिका में या मध्यचक्र में देखना है । (२) सिद्ध भगवान की मुद्रा यह कि वे सिद्धशिला पर स्फटिकवत् या ज्योति स्वरूप व अनंत संख्या में विराजित है । (३) आचार्य भगवंत की मुद्रा यह कि वे पाट पर विराजते हुए जनता को पंचाचार का प्रवचन देते हैं । (४) उपाध्याय भगवंत साधुमंडली को पढा रहे हैं। वैसी अनंत मंडली वाले अनंत उपाध्याय दिखें । (५) साधु भगवंतों की मुद्रा यह कि वे कायोत्सर्ग ध्यान में खडे है । अपनी अपनी मुद्रा में व अनंत संख्या में परमेष्ठियों को देखने से भावोल्लास बढता रहता है। और अनंत की संख्या में देखना है, इसलिए इसमें मन स्थिर रहेता है। यह पिंडस्थ ध्यान है । नवकार की भांति नवपद के ध्यान में वे ही पंच परमेष्ठि, किन्तु चार कोण में नमो दंसणस्स, नमो नमो चास्तिस्स, नमो तवस्स ये चार पद दिखाइ पडे । नाणस्स, Jain Educ ३

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