Book Title: Prastavik Shloak Sangraha
Author(s): Priyankarvijay
Publisher: Dalichand Jain Granthmala

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Page 38
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir वशीफरण यह मंत्र है, तज दे वचन कठोर तुलसी मीठे बोलसे, सुख उपजे चउ ओर ॥ १७२ ॥ जबराइका पेंडा न्यारा, कोई मत मानो रीस । सब देवता शीष पूजावे, लिंग पूजावे ईश ॥१७३ ।। भंग वेचीथी जा दीना, भूरखा वेचाथा ता दीना । खबर पड़ेगी ता दीना, रंगरोट कटेगो जा दिना ॥ १७४।। घर नहि तो मठ बनाया, धंधा नहि तो फेरी । बेटा नहि तो चेला मुंडा, ऐसी माया घरी ॥१७५॥ जब तक तेरे पुन्यका, ओर पता नहि करार । तब लग गुना माफ है, अवगुण करो हजार ॥१७६ ॥ पापी दृष्टि जीवने, धर्म वचन न सुहाय । के ऊंधे के लडपडे, के उठके घर जाय ॥ १७७ ॥ नारी कपटकी कोथली. नारी कपटकी खान । जे नारी के वश पड्या, ते न तर्या संसार ॥ १७८ ॥ For Private And Personal

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