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वशीफरण यह मंत्र है, तज दे वचन कठोर तुलसी मीठे बोलसे, सुख उपजे चउ ओर
॥ १७२ ॥
जबराइका पेंडा न्यारा, कोई मत मानो रीस । सब देवता शीष पूजावे, लिंग पूजावे ईश ॥१७३ ।।
भंग वेचीथी जा दीना, भूरखा वेचाथा ता दीना । खबर पड़ेगी ता दीना, रंगरोट कटेगो जा दिना ॥ १७४।।
घर नहि तो मठ बनाया, धंधा नहि तो फेरी । बेटा नहि तो चेला मुंडा, ऐसी माया घरी ॥१७५॥
जब तक तेरे पुन्यका, ओर पता नहि करार । तब लग गुना माफ है, अवगुण करो हजार
॥१७६ ॥
पापी दृष्टि जीवने, धर्म वचन न सुहाय । के ऊंधे के लडपडे, के उठके घर जाय
॥ १७७ ॥
नारी कपटकी कोथली. नारी कपटकी खान । जे नारी के वश पड्या, ते न तर्या संसार
॥ १७८ ॥
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