Book Title: Prastavik Shloak Sangraha
Author(s): Priyankarvijay
Publisher: Dalichand Jain Granthmala

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Page 40
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir भय त्यां कहीं न मानवो, ज्यां न होय ज्ञातिजन पास । कुहाडी काष्ठ विना, कदि न करे तरुवर नाश ॥१८६ ॥ निज धर्म जातिका, जिसको नहि अभिमान है। वह नर नहि वीन पुंछक, और मृतक समान है ॥ १८७॥ कोटडीए नाणां कदि भले बेसे, पण धर्म विनाधन शोभे नहि। सोले श्रृंगार सजे भले सुंदरी, पण नाक विना नारी शोमे नहि कितनेक मुफलिस हो गये, कितनेक तवंगर हो गये। खाख में जब मील गये, तब दोनू बराबर हो गये ॥१८९।। पैसो मारो परमेश्वर, कायडी मारो गुरु । छोकरां मारां संत साधू, सेवा किसकी करु ॥१९॥ शठने तो शिक्षा विना. कदि न आवे सान । कहींए खरने करगरी, तो न तजे तोफान ॥ १९१ ॥ लांचे लोको लूटवा, तजी खावं हराम । लायक जन लायक नर्हि, कोली भीलका काम ॥१९२॥ For Private And Personal

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