Book Title: Prastavik Shloak Sangraha
Author(s): Priyankarvijay
Publisher: Dalichand Jain Granthmala
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अति मला नहिं बोलना, अति भला न चूप । अति भला नहि वरसना, अति भला नहि घुष ॥२२१ ।।
अंधाने अंधो कहे, वसमुं लागे घेण । धीरे धीरे पुछीए, शाथी खोया नेण
॥ २२२॥
मुरख जाणे मुज विना, चाले नहि व्यवहार । गया युधिष्ठर राम नल, पण चाळे संसार
॥२२३ ।।
राजा कोनो गोठीओ, जोगी कोनो मित्त । वेइया कोनी नार है, त्रण मित्त कुमित्त
अन्यनी निंदा जे करे, तम आगळ जे आज । क्लते करशे ते नकी, तम निंदानु काज
॥ २२५।।
बड़ा बडाई ना करे, बड़ा न बोले बोल । हीरा मुखसे ना कहे, लाख हमारा मोल
॥२२६॥
अंक विना अगणित मीडां, मिथ्या जेम मनाय । विवेक सद्गुण विण त्यम-विद्या व्यर्थ गणाय ॥ २२७॥
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