Book Title: Prastavik Shloak Sangraha
Author(s): Priyankarvijay
Publisher: Dalichand Jain Granthmala

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Page 44
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir दुःखमें सुमरिन सब करे, सुख में करे न कोय । जो सुख में सुमरिन करे, तो दुःख काहे को होय || २१४ ॥ संपत गई ते सांपडे, गया वलत है व्हाण | गत अवसर आवे नहिं, गया न आवे प्राण काल करे सो आज कर, आज करे सो अब्ब । अवसर बित्यो जात है, फिर करेगो कब् जाकी जैसी बुद्धि है, वैसा कहे बनाय । वाको बुरो न मानीए, लेने कहां से जाय गेहु गोरस गोरडी, गज गुणियल ने गान । छ गग्गा जो इहां मीले, तो सग्गह शुं शुं काम ॥ २१७ ॥ छोटे नर के पेट में, रहे न मोटी बात । पाशेरी के पात्र में, कहां से शेर समात मरन मरन सबको कहे, बहुरी मरन न कोय । कबीर मरन ऐसा करो, बहुरी मरन न होय ॥ २१५ ॥ For Private And Personal ॥ २१६ ॥ ॥ २१८ ॥ ॥ २१९ ॥ ॥ २२० ॥

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