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दुःखमें सुमरिन सब करे, सुख में करे न कोय । जो सुख में सुमरिन करे, तो दुःख काहे को होय || २१४ ॥
संपत गई ते सांपडे, गया वलत है व्हाण | गत अवसर आवे नहिं, गया न आवे प्राण
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब्ब । अवसर बित्यो जात है, फिर करेगो कब्
जाकी जैसी बुद्धि है, वैसा कहे बनाय । वाको बुरो न मानीए, लेने कहां से जाय
गेहु गोरस गोरडी, गज गुणियल ने गान । छ गग्गा जो इहां मीले, तो सग्गह शुं शुं काम ॥ २१७ ॥
छोटे नर के पेट में, रहे न मोटी बात । पाशेरी के पात्र में, कहां से शेर समात
मरन मरन सबको कहे, बहुरी मरन न कोय । कबीर मरन ऐसा करो, बहुरी मरन न होय
॥ २१५ ॥
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॥ २१६ ॥
॥ २१८ ॥
॥ २१९ ॥
॥ २२० ॥