Book Title: Prastavik Shloak Sangraha
Author(s): Priyankarvijay
Publisher: Dalichand Jain Granthmala

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Page 48
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir ૪૦ -बहुत वणिज बहुत बेटियां, दो नारी भरतार | उसको क्या है मारना, मार रहा किरतार पोथी पढ पढ जग मुआ, जोगी भया न कोय । ढाइ अखर प्रेमके पढै, सो जोगी होय ।। २४२ ।। अन्नन्न देश जाया, अन्नन्नाहार वद्धिय शरीरा । जिण सासणे पवन्ना, सन्धे ते बन्धवा भणिया ॥ २४४ ॥ बहुआ नर दीसंति, नारी नई बुडवि गया । विरला केई तरंति, तारुण्णय तारु हुआ आरंभे नत्थि दया, महिला संगेण नास ए बम्भं । संकाए समत्तं पव्वज्जा दव्व गहणेणं ॥ २४३ ॥ जहा लाहो तद्दा लोहो, लाहा लोहो पवडूइ । दो मास कणय कजं, कोडिए विन नियं For Private And Personal ॥ २४५ ॥ महिला कूड चरित, गंभ पुण पार न जाणई । दिनि डरपई दोरडई, रयणि विसहर फण मोडई ॥ २४७ ॥ ॥ २४६ ॥ ।। २४८ ॥

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