Book Title: Prastavik Shloak Sangraha
Author(s): Priyankarvijay
Publisher: Dalichand Jain Granthmala
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-बहुत वणिज बहुत बेटियां, दो नारी भरतार | उसको क्या है मारना, मार रहा किरतार
पोथी पढ पढ जग मुआ, जोगी भया न कोय । ढाइ अखर प्रेमके पढै, सो जोगी होय
।। २४२ ।।
अन्नन्न देश जाया, अन्नन्नाहार वद्धिय शरीरा । जिण सासणे पवन्ना, सन्धे ते बन्धवा भणिया ॥ २४४ ॥
बहुआ नर दीसंति, नारी नई बुडवि गया । विरला केई तरंति, तारुण्णय तारु हुआ
आरंभे नत्थि दया, महिला संगेण नास ए बम्भं । संकाए समत्तं पव्वज्जा दव्व गहणेणं
॥ २४३ ॥
जहा लाहो तद्दा लोहो, लाहा लोहो पवडूइ । दो मास कणय कजं, कोडिए विन नियं
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॥ २४५ ॥
महिला कूड चरित, गंभ पुण पार न जाणई । दिनि डरपई दोरडई, रयणि विसहर फण मोडई ॥ २४७ ॥
॥ २४६ ॥
।। २४८ ॥

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