Book Title: Prastavik Shloak Sangraha
Author(s): Priyankarvijay
Publisher: Dalichand Jain Granthmala

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Page 46
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir संगत विचारी शुं करे, जेनु हृदय कठोर। नव नेजा पानी चडे, पत्थर न भीजे कोर ॥२२८ ॥ तुलसी हाय गरीब की, कबू न खाली जाय । मुवे ढोर के चामसे, लुहा भस्म हो जाय ॥२२९ ॥ सदैव जे साथ रहे, तेमां खटपट थाय । दांत तळे कोइक दिने, जीभ जरुर कचराय ॥२३० ॥ निंदक हमेरा मत मरो, मरो हमेरा पूत । वो नरके ले जायेगा, वो सरजेगा भृत ॥२३१ ॥ जब तुं आयो जगतमें, जगत हंसे तुं रोय । अब तो एसा कर चलो, तुं हंसे जग रोय ॥२३२ ॥ कबीरा सोही पीर है, जो जाणे पर पीर ।। पर पीर जीन्हे जानी नहीं, सो काफर ने पीर ॥२३३ ।। नावमें नदीयां डुब गई, कुवेमें छग गई आग । कीचड पानी जल गया, मछली रह गई साफ ॥२३४ ।। For Private And Personal

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