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संगत विचारी शुं करे, जेनु हृदय कठोर। नव नेजा पानी चडे, पत्थर न भीजे कोर
॥२२८ ॥
तुलसी हाय गरीब की, कबू न खाली जाय । मुवे ढोर के चामसे, लुहा भस्म हो जाय
॥२२९ ॥
सदैव जे साथ रहे, तेमां खटपट थाय । दांत तळे कोइक दिने, जीभ जरुर कचराय
॥२३० ॥
निंदक हमेरा मत मरो, मरो हमेरा पूत । वो नरके ले जायेगा, वो सरजेगा भृत
॥२३१ ॥
जब तुं आयो जगतमें, जगत हंसे तुं रोय । अब तो एसा कर चलो, तुं हंसे जग रोय
॥२३२ ॥
कबीरा सोही पीर है, जो जाणे पर पीर ।। पर पीर जीन्हे जानी नहीं, सो काफर ने पीर ॥२३३ ।।
नावमें नदीयां डुब गई, कुवेमें छग गई आग । कीचड पानी जल गया, मछली रह गई साफ ॥२३४ ।।
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