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माता पासे बेटा मागे, कर बकरे का साटा। अपना पुत खीलावन चाहे, पुत्त दूजेका काटा ॥२०॥
तुलसी इण संसार में, भात भातके लोक । सबसे हीलमील चालीए, नदी नाव सयाग
॥२०१॥
पंडित भये मसालची, बातां करे वनाय । औरन को उजला करे, आप अंधेरे जाय
॥२०२ ॥
मीठा बोला मानवी, केम पतीज्यां जाय । मोर कंठ मधुरो लवे, साप समुलो खाय
॥२०३॥
सास तीरथ ससरा तीरथ. आधा तीरथ साली। मा बापको लातज मारु, सब तीरथ घरवाली
॥२.४॥
भली करत लगत विलंब, विलंब न दूरे विचार । भवन बनावत दिन लगत, ढहत न लागत वार ॥ २०५ ॥
कार्तिक मासके कुतरे, तजे अन्न अरु प्यास । तुलसी वाकी क्या गति, जिनके बारे मास
॥२०६॥
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