Book Title: Prastavik Shloak Sangraha
Author(s): Priyankarvijay
Publisher: Dalichand Jain Granthmala

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Page 42
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir माता पासे बेटा मागे, कर बकरे का साटा। अपना पुत खीलावन चाहे, पुत्त दूजेका काटा ॥२०॥ तुलसी इण संसार में, भात भातके लोक । सबसे हीलमील चालीए, नदी नाव सयाग ॥२०१॥ पंडित भये मसालची, बातां करे वनाय । औरन को उजला करे, आप अंधेरे जाय ॥२०२ ॥ मीठा बोला मानवी, केम पतीज्यां जाय । मोर कंठ मधुरो लवे, साप समुलो खाय ॥२०३॥ सास तीरथ ससरा तीरथ. आधा तीरथ साली। मा बापको लातज मारु, सब तीरथ घरवाली ॥२.४॥ भली करत लगत विलंब, विलंब न दूरे विचार । भवन बनावत दिन लगत, ढहत न लागत वार ॥ २०५ ॥ कार्तिक मासके कुतरे, तजे अन्न अरु प्यास । तुलसी वाकी क्या गति, जिनके बारे मास ॥२०६॥ For Private And Personal

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