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ब्राह्मन भये तो क्या भये, गले में डाला सूत । आत्मज्ञान की खबर नहीं, भये श्मशान का भूत ॥१९३॥
गुरु गोविंद दोनूं खडे, किसकुं लागू पाय । बलिहारी गुरु देवकी, जीने गोविंद दियो वताय ॥ १९४ ॥
काम क्रोध मद लोभकी, जब लग मनमें खान । तब लग पंडित मूर्ख हि, सब हि एक समान ॥ १९५ ॥
सासरा सुख वासरा, दो दिनका आसरा । तीसरे दिन रहेवेगा, तो खावे खासरा
॥१९६॥
चलनो भलो न कोस को, हिता भली एक नार । मंगना नहीं सगा बापसे, जो रखावे प्रभू टेक ॥१९७ ॥
कबीर कहे कमालकुं, दो बातें शीख ले । कर साहेब की बंदगी, भूख्या को अन्न दे
॥१९८ ॥
जीव जीवके आशरे. जीव करत है राज । तुलसी रघुवीर आशरे क्यु बगडेगो काज
॥१९९ ॥
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