Book Title: Prashamratiprakaran
Author(s): Umaswati, Umaswami, Yajneshwar S Shastri
Publisher: L D Indology Ahmedabad

Previous | Next

Page 149
________________ 74 पाठभेदाः ३२. रागद्वेषोदयोद्धता:-0. ३३. परत्रेह च-C. ३४. निवृति-C. ३५. शाश्वता-G. ३६. स्वगुणालङ्कृतस्य-B. E. ६७. नित्य- B. D. G. ३८ बलहीना च-C. ३९ उपभोगयोग्येन-13. HE. F. G ४०. चाटुकर्म -B. E. G. ४१. परिवादात्मोत्कर्षाच्च-B. G. ४२ रम्यकरसरागसेविता-C. ४३. समनुगम्य:-B. C. 1). E. E. G. ४२. अविकम्पम्-G. ४५. क्षपणोपायञ्च-G. ४६ षण्डक-C. ४७. एषणानहा --G. ४८. क्रिया:-G. ४९. परान्योन्याः -G. ५०. व्यापृत:- B. C. D. E. F. G. ५१. चेष्टते-C. ५२. काङ्क्षया-C. ५३. तत्सरागो-B. G. ५. शोकरहितस्य-C. ५७. त लभते न-B. D. F. G. ५६. उपासितो-D. F. ५७. जितलोभरोषमदन:-A1. D.E.. ५८. निर्जर:-D. E. F. G. २९ ब्रह्मचारिणां-B. D.E. F.G. ६०. नालाधनिको-C. ६१. (a) विद्वेष्टि-18. G. (1) विद्वेष्टि:-E. ६२. (a) कलपाकल्पश्च-B. (b) कल्पाकल्पस्य-D. ६३. योगभरयात्रमात्रार्थ -C. ६४. पुत्रिपलवच्च-C. ६.. दारूपमधृतिः -B. E. ६६. कल्प-C. D. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180