Book Title: Prashamrati Prakaranam
Author(s): Rajkumar Jain
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 154
________________ कारिका २०६-२०७-२०८] प्रशमरतिप्रकरणम् १४५ अजीवानधिकृत्याहअजीव द्रव्योंका वर्णन करते हैं: धर्माधर्माकाशानि पुद्गलाः काल एव चाजीवाः । पुद्गलवर्जमरूपं तु रूपिणः पुद्गलाः प्रोक्ताः ॥ २०७॥ टीका-धर्मद्रव्यम् , अधर्मद्रव्यम् , आकाशद्रव्यम् , पुद्गलद्रव्यम् , कालद्रव्यमिति पश्चाजीवद्रव्याणि । तत्र तेषु पञ्चसु पुद्गलद्रव्यं रूपरसगन्धस्पर्शवत् । शेषं द्रव्यचतुष्टयमरूपं रूपादिवर्जितमित्यर्थः । रूपिण इत्यन्त्र गन्धरसस्पर्शाः सर्वदा रूपाविनाभाविन इति परमाणावपि सम्भवन्तीति दर्शितं भवति ॥ २०७॥ अर्थ-धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाशद्रव्य, कालद्रव्य और पुद्गलद्रव्य-ये पाँच अजीव द्रव्य हैं । पुद्गल के सिवाय शेष चारों द्रव्य अरूपी हैं और पुद्गलद्रव्य रूपी कहे गये हैं । भावार्थ-अजीव द्रव्य पाँच हैं । उनमें से केवल एक पुद्गलद्रव्य रूपी है । उसमें रूप, रस, गन्ध और स्पर्श-ये चारों गुण पाये जाते हैं । ये चारों गुण परस्परमें अविनाभावी हैं । इसलिए रूपी होनेसे उन चारोंका ग्रहण होता है । अत: जितने भी परमाणु हैं, उन सबमें चारों ही गुण पाये जाते हैं । इसलिए वे रूपी कहे जाते हैं। परन्तु शेष द्रव्योंमें रूपादि गुण नहीं पाये जाते, इसलिए वे अरूपी अथवा अमूर्तीक कहलाते हैं । स्कन्धास्तुपुद्गलद्रव्यके सम्बन्धमें कुछ और भी कहते हैं: द्वयादिप्रदेशवन्तो यावदनन्तप्रदेशकाः स्कन्धाः । परमाणुरप्रदेशो वर्णादिगुणेषु भजनीयः ॥२०८ ॥ टीका-द्वयादिप्रदेशभाजः स्कन्धाः संघाताः एकद्वयणुकप्रभृतयः । द्वयोरण्वोस्त्रयाणां वेत्यादिप्रारब्धाः यावदनन्तप्रदेशाः सर्वे स्कन्धाः। परमाणुस्तु न स्कन्धशब्दाभिधेयोऽप्रदेशत्वात् । न हि तस्य द्रव्यप्रदेशाः सन्त्यन्ये । स्वयमेवासौ प्रदेशः। प्रकृष्टो देशोऽवयवः प्रदेशः । न तत. परमन्यः सूक्ष्मतमोऽस्ति पुद्गलः । द्रव्यप्रदेशो वर्णरसगन्धस्पर्शगुणेषु भजनीयः सेवनीयः । प्रदेशत्वेन सन्निहितस्य वर्णादयोऽवयवास्तैरवयवैः सप्रदेश एवासौ द्रव्यावयैरप्रदेश इति । यथोक्तं शास्त्रे-“कारणमेव तदन्त्यं सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः । एक रसगन्धवों द्विस्पर्शः कार्यलिङ्गश्च" ॥ १॥ इति। १-प्रदेशिक : स्क-ब.। प्र. १९

Loading...

Page Navigation
1 ... 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242