Book Title: Prashamrati
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________________ [133-142] प्रशमरतिः स्वयमपि तदोषपदं सदा प्रयत्नेन परिहार्यम् // 133 // पिण्डैषणानिरुक्तः कल्पाकल्पस्य' यो विधिः सूत्रे / ग्रहणोपन्नोगनियतस्य तेन नैवामयन्नयं स्यात् // 134 // व्रणलेपाक्षोपाङ्गवदसगन्योगभरमात्रयात्रार्थम् / पन्नग इवाभ्यवहरेदाहारं पुत्रपलवच्च // 135 // गुणवदमूञ्छितमनसा तद्विपरीतमपि चाप्रदुष्टेन / दारूपमधृतिनाभवति कल्पमाखायमास्वाद्यम् // 13 // कालं क्षेत्र मात्र स्वात्म्यं 2 द्रव्यगुरुलाघवं स्वबलम् / ज्ञात्वा यो ऽभ्यवहार्य भुंक्ते किं नेषजैस्तस्य // 137 // पिण्डः शय्या वस्त्रैषणादि पात्रैषणादि यच्चान्यत् / कल्पाकल्पं सद्धर्मदेहरक्षानिमित्तोक्तम् // 138 // कल्पाकल्पविधिज्ञः संविग्नसहायको विनीतात्मा / दोषमलिने ऽपि लोके प्रविहरति मुनिनिरुपलेपः॥१३९ यद्वत्पङ्काधारमपि पङ्कजं नोपलिप्यते तेन / धर्मोपकरणधृतवपुरपि साधुरलेपकस्तद्वत् // 10 // यहत्तुरगः सत्स्वप्यानरणविभूषणेष्वननिषक्तः। तद्वदुपग्रहवानपि न संगमुपयाति निर्ग्रन्थः // 11 // ग्रन्थः कर्माष्टविधं मिथ्यात्वाविरतिदुष्टयोगाश्च / तज्जयहेतोरशठं संयतते यः स निर्ग्रन्थः // 15 // 1. A. कल्प्य . for कल्प here & hereafter. 2 A. सात्म्यं .

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