Book Title: Pramanvartik Bhasyasya Karikardhapad Suchi
Author(s): Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 15
________________ प्रमाणवार्तिकभाष्यस्य कारिकार्यपादसूची अभावस्तु विना भावं .. १८. ६ अभावव्यवहारस्य ४. २१८. ५३९ अभावस्य हि भावत्वे ३. ५१२. ३१९ अमावस्यापि व्यापित्वे ४. ३५९. ५८३ अभावाप्रतिपत्तौ तु ३. ३८०. २९० अभावे कल्पनावृत्ति ३. ७४२. ३६८ अभावेन क्रियाशक्ति ४. ४०१. ५९१ अभावेन प्रमाणेन २. २१.६ अभावेन प्रमाणेन ४, ५७७.६३६ अभावेन हि शीतस्य ३. २७२. .३१ अभावेऽपि पदार्थानां ३. ६५५. ३५७ अभावेऽप्यात्मनो दृष्टं ३. ६५४. ३५७ अभावेऽप्युपलम्भस्य ४. ४४८. ५९७ अभावे भ्रान्तता केयं ३. ८३०. ३७७ अभावोऽव्यापिनं कुर्यात् ४. ३६०. ५८३ अभावो न स्वरूपेण ४. ३५८. ५८३ अभावो यदि नास्त्येव ४. ५११. ६१३ अभावो यद्यभिन्नः स्याद् ३. ५१३. ३२० अभावो हि पदार्थानां २. ४१२.६१ अभिप्रायाविसंवादात् २. ११.६ अभिन्नं यदि सामान्यम् ३. ४०६. २९३ अभिन्नप्रतिभासस्य ३. ३०३. २५३ अभिन्नस्य स्वरूपेण ३. ७२८. ३६६ अभिन्नो न विभेदेन ४. ३७६. ५८५ अभिमानोऽपि कस्तत्र ३. ४६४. ३०८ अभिलापस्य संसर्गा ३. ४५५. ३०७ अभिलापाच्च भेदेन ३. १७२. १८९ अभिलाषश्च दुष्टेऽर्थे २. ८५०. १५६ अभिलाषस्मरणयोः २. ८५१. १५६ अभिलाषाच्च तवृत्ति २. ८५१. १५६ अभेद एव हि प्राप्तो ३. २२६. २११ अभेदपले भेदश्चत् ४. ५१. ४७९ अभेदस्य प्रतीतिस्तु .. १७०. १८८ अभेदे ग्राह्यरूपस्य ३. १०६७. ४१९ अभेदेन प्रतीतौ हि ३. १०६७. ४१९ अभेदेनावभासश्चेत् ४. ३७०. ५८४ अभेदोऽप्यस्तु तत्रापि ३. ७२८. २६६ अभ्यासपूर्वकत्वस्य २. ५८३. १०४ अभ्यासपूर्वकाः सर्वे २. १८४. ५५ अभ्यासबलभावित्व ३. ९७२. ३९३ अभ्यासमूलकाः सर्वे २. ६२९. ११५ अभ्यासहेतुको रागः २.६३५. ११९ अभ्यासाच्च तथाभूता २. ५२८. ९२ अभ्यासात्तु मनो यादृक् २. ५०१. ८५ अभ्यासात्त विशेषो यः २. ३८७. ५५ अभ्यासात् सर्ववित्त्वस्य ३. ५६७. ३२९ अभ्यासात स्पष्टता तस्य २, ३६१. ५१ अभ्यासादपि तस्येष्टं ३. ३९३. २९२ अभ्यासादिन्द्रियं जा २. ५०६, ८६ अभ्यासादेव दृढता ४. ८६. ४८७ अभ्यासाद् यावदध्यक्ष २. ७१३. १३१ अभ्यासाद् (हि) विशेषो यः २. ३८६. ५५ अभ्यासाल्लक्ष्यते पश्वा २. १८२. २५ अभ्रान्तः प्रत्ययो यद्व ३. ७०२. ३६२ अभ्रान्ततोच्यतेऽस्तु ३. ३५५. २८० अभ्रान्तप्रतिषेधे तु ३. १०४७. ४१२ अभ्रान्तमानसासङ्गी ४. १४२. ५१४ अभ्रान्तमेव सकलं ३. २५३. २२० अभ्रान्तिरविसंवादात् ३. २५२. २२० अमनस्विनि का वाता ३. १११७. ४३८ अमुख्येऽप्येकदेशत्वात् ४. ३५४. ५८० अमुख्येऽप्येकदेशत्वात् ४. ३५५. ५८० अमूढस्मृतिसंस्कारः ४. २१७. १५३९ अमूर्तेऽन्त्यविशेषेऽपि ४. ६८, ४८२ अयं दृष्टस्तदायीति ४. ४७२. ६०२ अयं शुक्लो गुणोऽश्वस्य २. ५५३. ९५ अयं सदृशशब्देन ३. ३७. १७३ अयं स्तम्भ इति प्राप्त २. ६३२. ११७ अयं हेतुस्तवैवं स्यात् ४. ४९५. ६०६ अयत्नानित्यनित्याश्च ५, ३९३. ५९. अयमेव स्वभावश्च ३. ५९२, ३३५ अयुक्तं कारयित्वासौ २. २५६. ६ अयुक्तं चैतदिति चेद् २. ७५४. १४१ अयोगिनामदृश्यत्वा २. ६१७. ११४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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