Book Title: Pramanvartik Bhasyasya Karikardhapad Suchi
Author(s): Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 71
________________ प्रमाणवार्तिकभाष्यस्य कारिकाधंपादसूची व्यक्ति मेदो भवेदेव ४. ३३९. ५७४ व्यक्तिरेव ततोऽपेक्ष्या ४. ३४१. ५७४ व्यक्तिर्व्यक्तिर्दश्यमाना ५. ५६. ४८० व्यक्तिव्यङ्ग्यं हि सामान्यं ४. २४४. ५४६ - व्यक्तिव्यङ्गधं हि सामान्य ४. ३४०. ५७४ व्यक्तिशून्यप्रदेशादौ ४. ३४१. ५७४ व्यक्तिश्च बुद्धिः साप्यस्ति ४. २६१. ५४९ व्यक्तिसामान्यताप्यस्य ४. ३७२. ५८५ व्यक्तिः सत्त्वं विना नास्ति ४. २५१. ५४८ व्यक्तेरुदयमात्रेण ३. ११६१. ४६३ व्यक्तेचेक्छक्तितो जाति ४. २६८. ५४८ व्यक्तेः परस्परं भेदे ४. ३३९. ५७४ व्यक्तेः सामान्यवचन २. ७७. १२ व्यक्तैः प्रतीतिदोषः किं ४, ३३५. ५७३ व्यक्त्यन्तरगतं न स्या ४. ३२६. ५७२ व्यक्त्यन्तरस्य गमकं ४. ३३४. ५७३ व्यक्त्यभेदे न सामान्य ४. ३७५. ५८५ व्यक्त्यसंसर्गिरूपस्य ४. ३७८. ५८६ व्यजक जनकं भ्रान्ते' ४. ४३४. ५९५ व्यञ्जकं न विभागेन ४. २४४. ५४६ व्यजकच प्रदीपादि २, ३२१. ४२ व्यञ्जकाज्ञानमप्येवं ३. ११३३. ४४३ व्यञ्जकादन्यरूपत्वं ४. ४३३. ५९५ व्यतिरिक्तं किमप्यस्ति ३. २२४. २१० व्यक्तिरिक्त न धूमत्वे २. ३२६. ४३ व्यतिरिक्तस्य सद्भावे ३. ९६५. ३८९ व्यतिरिक्तेन कल्पेन ३. ३२२. २६७ व्यतिरिक्तेन तस्यापि ३. ११४६. ४४७ व्यतिरिक्ते हि नाभावे २. २८. ६ व्यतिरिक्तोपधानस्य ३. ११०८. ४३३ व्यतिरिक्तो यदा धर्मस् ३. ६९६. ३६१ व्यतिरेककल्पनाबीज ३. ६१५. ३५४ व्यतिरेके च तद्धेतु २. ४८८. ८० व्यतिरेकेण तस्यासौ ४. ३५७. ५८२ व्यतिरेके ततस्तस्य ३. ५१२. ३१९ व्यतिरेके विशेषः क २. ८०१. १५० व्यतिरेकः स्वरूपेऽपि ३. ६२८. ३५३ व्यपदेशस्य विषय ३. ६२९. ३५३ व्यपदेशोऽर्थभेदेन ३. १६६. १८८ व्यभिचारी ततस्तस्य ४. २१५. ५३८ व्यभिचारी स्वदोषेण ४. ५४४. ६२४ व्यर्थकत्वादशक्यत्वात् ३. ७९४. ३७४ व्यर्थता भिषजः कापि २. ५११. ८९ व्यर्थतैवानुमानस्य ३. १३७. १८१ व्यवच्छेदक्रियायां हि ४. ५२४. ६१८ व्यवच्छेदफलं वाक्यं ४. ३९०. ५८८ व्यवच्छेदफलं वाक्य ५. ३८१. ५८६ व्यवच्छेदफलत्वेन ४. ३८०. ५८६ व्यवधानादयः सन्ति २. ३३२. ४४ व्यवधानेऽपि नैवासौ ४. ८. ४६८ व्यवस्थामात्रमेवैतद् २. ५६६. ९९ व्यवस्थाहेतवस्तत्र ४. ६०७. ६४५ व्यवहारं प्रतीतं २. ४१५. १३२ व्यवहारत एकत्वात् २. १९९. २६ व्यवहारपरामर्शा २. २२१. २९ व्यवहारप्रसिद्धिस्तु ३. ९५४. ३८५ व्यवहारमात्रकमिदं २. ३९५. ५६ व्यवहारमात्रमेवेदं ४. १४५. ५१५ व्यवहारमात्रमेवैत २. ५२९. ९२ व्यवहारस्तथा नास्ति ३. २४६. २१९ व्यवहारस्तथैवास्तु ३. ३३२. २७० व्यवहारिणानुगन्तव्याः ४. १७०. ५२८ व्यवहारो न चेदेवं ३. ९०८. ३८२ व्यवहारो न तत्त्वे तु ३. ३२८. २६८ व्यवहारोऽनुमानेन २. ७० . १३१ व्यवहारोऽस्ति लोकस्य ४. ११. ४६९ व्यवहारो हि नामाय ३. ३३०. २६९ व्यवहारः परित्यक्तु २. ७०१. १३१ व्यवहारः प्रमाणं चेद ४. ३८७. ५८० व्यवहारः स एवात्र ३. ४६७. ३०८ व्यवहारः समाप्तोऽयं ३. १८३. १९४ व्याक्षेपस्य बलीयस्त्वे २. ५००. ८५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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