Book Title: Pramanvartik Bhasyasya Karikardhapad Suchi
Author(s): Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 69
________________ प्रमाणवातिकमावस्य कारिकापार्दसूची विनापि परमाणूनां २. ५३५. ९४ विनापि यदि कस्तस्य २. २५९. ३७ विनाप्यात्मानितत्वेना ३. ७६. १७६ विना मावति तच्च २. २९. ६ विना भेदस्य संवित्ति ३. ३८१. २९० विना विशिष्टानुभवं ४. ५७६. ६३६ विनाश एव तस्य स्यात् ४. १०७. ५०२ विनाशः समकालस्तु ४. ५९५. ६४२ विनैव सकलं ज्ञान २. ५०५. ८६ विपक्षाद् बाधनाशका ४. २०१. ५३६ . विपरीतः समारोपो ४. २९. ४७३ विपरीताऽथवा ख्याति ३. १८४. १९५ विपरीतादिवित्तश्चेत् ३. ९२७. ३८४ विपरीते यदि ख्याति ३. १८४. १९५ विपर्ययेण यत् तत्त्वं ३. २१२. २०७ विपर्यये प्रमाणं तु २. ७९१. १४६ विपर्ययोऽन्यथा दाढ\ ३. २९४. २४० विपर्ययोपलब्धिश्चेत् ३. ८२७. ३७६ विपर्यासो विपर्यासात् ३. २५०. २१३ विपर्यासाविपर्यास २. ३७. ८ विप्रमोषः स्मृतेरिष्टः २. ६४७. ३५६ विप्रयुक्तो हि संस्कारो ३. १८१. १९२ विप्रलप्यापि यत्किञ्चिद् ४. १९. ४७५ विभागः स कथं ज्ञातो ३. ९८. १७८ विभागात कार्यकरणे २. ६७२. १२५ विभागोऽयमतः साम्य ३. ३५७. २८० विभिन्नप्रतिभासस्य ३. ३०३. २५३ विक्रमावित्रमत्वस्य ३. २५३. २२० विमृश्यकारिता पुंसां ४. १५५. ५१६ वियोगे दृश्यमानेऽपि २. ७६२. १४२ विरागाणां न चेष्टा स्यात् २. ७४३. १३० विरुद्ध एव हेतुः स्यात् ३. ८. १७० विरुद्धकार्यव्याप्यस्य ४. ५८६. ६४० विरुद्धधर्मसंसर्गे ३. ३२३. २६७ विरुद्धधर्माभ्यासेन ३. ६८१. १२७ विरुद्धस्योपलब्धेने २. २१४. २९ विरुद्धाव्यभिचारित्व ३. ८७१. ३८. विरुद्धाव्यभिचारि स्थाद् ४. ११८. ५११ विरूपायामपि ततो ३. ३३१. २६९ विरोधः के इवात्रास्ति ४. ८. ४६८ विलक्षणत्व तत्त्वस्य २. ४५०. ७१ विलक्षणत्वं नामेदं ४. २३८. ५४६ विलक्षणोऽपि हेतुर्यदस्ति ३. ६७८. ३५८ विवक्षानियमो नाम २. २३३. ३३ विवक्षापरतन्त्रत्वाद् २. १३४. १७ विवक्षाभ्यासतस्तत्र ३. २७४. २३३ विवक्षास्ताः पृथग्भूता २. २३४. ३३ विवक्षिततदन्यस्य २. २३५. ३३ विवक्षितस्य दृश्यस्य २. २३५. ३३ विवक्षितेन साध्येन ४. ९९.४.७ विवादपदभूतस्या ३. ७६४. ३७० . विवादमात्रसांकय ३. ३१५. २६१ विवादे प्राश्निकैरन्यै ३. ८६०. ३७९ विविक्तस्तेन रूपेण ४. ५७५. ६३५ विविधः प्रतिभासोऽय ३. ९८९. ३९७ विवेककारणाशक्तेः ३. ३९६. २९२ विवेचयेयुः सर्वेऽमी ३. ७६१. ३६९ विशन्त्य एव क्षयता प्रयान्ति ३. ९९८. ३९७ विशिष्टं जायते रूपं ३. १०१४. ४० विशिष्टता तदा सर्वः ३. ३०६. २५४ विशिष्टमेव पाण्डुत्व २. ३२६. ४३ विशिष्टमेव हेतुत्वं २. ४२७. ६६ विशिष्टरूपानुभवे ४. ५७८. ६३७ विशिष्टस्पर्शज्ञान २. ५३२. ९२ विशेषकल्पनायां तु २. ३४३. ४७ विशेषकल्पनान्नो चेद् २. ७३२. १३४ विशेषग्रहण नास्ति ३. २८७. २३७ विशेषण तु यत्तस्य २. ८८. १३ विशेषणत्वं पार्थस्य १. ३९१. ५८९ विशेषणमथान्यत्र ३. ७९७. ३७४ विशेषणविशेषत्व ३. २९५. २४१ विशेषणविशेष्यत्वं ३. ११११, ४३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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