Book Title: Pramanvartik Bhasyasya Karikardhapad Suchi
Author(s): Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 50
________________ प्रमाणवार्तिकभाष्यस्य कारिकाधपादसूची परस्परान्तर्भावे हि ४. ३५१. ५७९ परस्पराप्रतीतानां ४. ५१६. ६१५ परस्पराविनाभूतं २. ९५. १४ परस्पराविसंवादः ३. ९१०, ३८२ परस्परेण सम्बद्धौ ५. २२०. ५३९ परस्य रूपानुभवः कथं ३. ५१९. ३२१ परस्य सुखसंवित्ता ३. १११७. ४३८ परा चेन्नास्त्यजन्या ४. २६०. ५४८ पराननुप्रवेशेन २. २९. ६ परापेक्षा यदि ज्ञाता ३. ४२१. २९४ परामर्शादभेदस्य ३. ६९८, ३६१ परार्थकरणेच्छायां २. ८२९, १५३ परार्थकारिणामेतत् ४. २२. ४७२ परार्थकारी नामाऽयं ४. २६. ४७२ परार्थनिःस्पृहस्त्वस्ति २. ४८६. ७९ परार्थमनुमानं यत् ३. ६. १७० परार्थमात्रवृत्तीनां २. ७४६. १३८ परार्थवृत्तेः खड्गादे २. ६२६. ११५ परार्थो वा प्रयोगोऽयं २. ७५५. १४१ परार्थः सम्भवत्येव २. ८३०. १५६ परिणामक्रमोऽप्येष २. ५७०. १०१ परितुष्टः क्षणो यस्य २. ७५१ १४१ परित्यागः शरीरस्य २. ४५८. '७३ परिशिष्टं तु प्रागेव ३. ४ १७४ परिशुद्धं वचो नास्ति ३. ५५२. ३२९ परीक्षणं तस्य पुनर्न कार्यम् ४. ११२. ५.५ परीक्षा न प्रवृत्ता चेत् ४. १६६. ५७ परीक्षितं तद् यदि शास्त्रमुच्चः ४. ११२. ५०५ परीक्षित यदि भवेत् प्रमाणं ४. १६६. ५२७ परेण क्रियतामेव २. ८२९. १५३ परेण ग्रहणे तस्या ३. ६.४. ३३९ परेण यदि वक्तव्यं ४. २०. ४७१ परेण विषयाभाव २. ६. ४ परेण स्पृश्यमानस्य २. ६८२. १२७ परेणापि ततः सर्वो ३. १०७ .. ४२१ परेणापि प्रतीतं तत् २. ३३३. ४४ परेणापि प्रतीयेत २, ६८६. १२७ परेणाविदितं रूपं ३. ११२२. ४३९ परेणास्य प्रतीतिश्चेत् २. ४३१. ६६ परैरप्येवमेवेष्टं ३. ५००. ३१६ परोक्षः स्पर्शविज्ञाना ३. ३२५. २६८ परोक्षं यदि तज्ज्ञानं ३. ६१९. ३४५ परोक्षतां कथं च स्यात् ३. १२. १७१ परोक्षता किमर्थस्य ३. ५११ ३१९ परोक्षता चेदर्थस्य ३. १४२. १८२ परोक्षता तदैवास्य ३. ४६. १७४ परोक्षत्वे गृहीतेऽपि ३. ५१४. ३२० परोक्षपरदृश्यत्व ३. ४१४. २९४ परोक्षवस्तुसिद्धौ हि ३. ४७. १७४ परोक्षवस्तुसिद्धथैव ३. ४७. १७४ परोक्ष चेद् घटो नास्ति ३. १००६. ३९८ परोक्षस्य स्वरूपं कः ३. ६१९. ३४५ परोक्षे तु प्रमा नास्ति ३. १४. १७१ परोक्षे भावितामर्थे ३. ८०८. ३७५ परोक्षे वर्तमानस्य ३. ४४४. ३०५ परोपगमनेनाथ २. ३०४. ४१ परोपदेशप्रामाण्यं २. ६२. १० परोऽपि परविज्ञात ३. १०१. ३९८ परोऽपि प्रतिपाद्यैत ३. ८१८. ३७५ परो वस्तुबलाद् धूमा ३. ३२७. २६८ पर्यन्तावयविध्वंसे ४. २८०. ५५७ पर्युदासप्रसज्याभ्यां ३. २०२. २०४ पर्युदासे निषेधे वा २. ८३४. ३७७ पश्चात्तद्रूपनास्तित्वे ३. ७९२. ३३४ पश्चात्तस्य न दृष्टिश्चेत् ४. २५३. ५४८ पश्चाद् बाधस्तु संदिग्धो २. १७३. २४ पश्चाद् वदनतो भिन्नम् ३. ४४६. ३.६ पश्यन्नेवापदेशेन ३. २०४. २०५ पश्यामि बीजादुत्पत्ति ३. १४४. १८३ पश्याम्यहं स्मरामीति २. ८६४. १६१ पाकं करोति यागं च २. १३९. १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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