Book Title: Pramanvartik Bhasyasya Karikardhapad Suchi
Author(s): Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 19
________________ प्रमाणवार्तिकभाष्यस्य कारिकार्धपादसूची आकाशान्मोपघातस्तु ४. १३५. ५१३ आकाशासत्त्वपक्षे हि ४. ५६६. ६३० आकृतेरपि नैकत्वं ४. ४८. ४७९ आगमादपरः प्राहे २. २२०. २९ आगमादेव सिद्धोऽयं १. ९६. ४९० ओगमाद् व्योमधर्मत्वं २. ३४३. ४७ आगमान्न प्रसिद्धोऽयं ४. ९६. ४९० आगमेन प्रसिद्धे तु ४. १६२. ५१९ आगमोऽसौ तदुक्तत्वा २. २४६. ३५ अ(1)गामयाधितत्वेऽप्य २. ३६१. ५१ आग्रहस्तावदभ्यासात् २. ४५५. ७२ आघातेऽपि पृथग्भावो २. ५३५. ९४ आचार्यों न विमार्गगः ४. २३७. ५४५ आत्मत्वे हेतुभावे वा ४. x ६३२ आत्मधर्मस्वतन्त्रत्व ३. ७६३. ३७० आत्मनः क्षणिकत्वेऽपि २. ८३०. १५३ आत्मना तु कुतो भेद २. ८६३. १६१ आत्मना तु सुखादीनां ३. १०८९, ४२० आत्मनाऽन्येन वा तेन ३. ७९. १७७ आत्मनि प्रतिबद्धत्वा ४. x ६१२ । आत्मनीले भवेतां हि ३. ८९९. ३८२ आत्मनो द्रव्यता नैव ३. ८९७. ३८१ आत्मनो व्यतिरेक चेद् २. ७४९. १४० आत्मनोऽसम्भवाभावे ४. ४९.७. ६०८ आत्मन्यपि वशी नासा २. ३५१. ४८ आत्मन्यपि विरागश्चे २. ८४१. १५३ आत्मन्यपि समानोऽयं २. ८६४. १६१ आत्मन्येव हि न भ्रान्तिः २. ८४८. १५६ आत्मन्येवात्मनः कस्माद् ४. ४०९. ५९.२ आत्मवुद्धेस्तेन रूपेण ३. ३७३. २८४ आत्मभूतेन भिन्न २. ८१४. १५१ आत्मस्नेहं विनाऽन्यत्र २. ७९.२. १४७ आत्मस्वत्वेऽपि बुद्धित्वे ३. ११०६. ४३० । आत्मांशेऽवसिता ह्येषा ३. ८३८. ३७७ आत्मात्मीयग्रहावेशाज्३. ५३९. ३२८ आत्मानमात्मनैवात्मा ३. ७५७. ३६९ आत्मानमेव किं कश्चि ३. ८१६. ३७५ आत्मानमेव किं कश्चिद् ४. ७५. ४८४ आत्मा न सिद्धो दृष्टान्ते ४. १०३. ४९५ आत्मानुभविता दृष्टं ३. ८९६. ३८१ आत्मा प्रकल्प्यतेऽदृष्टः ४, ५४६. ६२५ आत्मायत्तः स चाभ्यासो २. ६२९. ११५ आत्मा यद्यपि नामकः ३. ७४. १७६ आत्मार्थ यदि वृत्तिः २. ७४६. १३८ आत्मीयाभिनिवेशे हि २. ५१०, १०९ आत्मीयेऽपि ततः स्नेह २. ८२७. १५२ आत्मेति तेन सर्वोऽयं ४. ४३१. ५९४ आत्मकः सोऽनुसन्धायी ३. ४८६. ३१२ आत्मोपकारस्मरणा २. ६३०. ११६ आदराभ्याससंसर्गि ३. ६८५. ३५९ आदेशादिव्यवस्थस्य ३. २५८. २२० आभोगादपि जायन्ते ४. ८३. ४८७ आभोगादपि दृष्टेऽर्थे ४. ८०. ४८६ आममानुषमांसाद्धि ३. ५६३. ३२९ आरोपः पूर्वदृष्टस्य ३. ३६२. २८१ आरोपितेन रूपेण २. २०७. २८ आरोपितो य आकारो ४. ६३. ४८१ आर्यस्य कर्तुं यदि साधु २. ३४९. ४८ आलम्बनत्वे विज्ञानं २. ५८४. १०५ आवृत्तिरेकरूपस्य ३. ४८७. ३१२ आश्रयत्वे गुणत्वं स्याद् ३. ४२४ ३१४ आश्रयाश्रयिभावेन २. ६६१. १२४ आश्रयासिद्धता चोक्ता ३. १.६१. ३८७ आश्वासादि पुनः सर्व २. ४६७. ७५ आस्तां तावत् कार्यतादि ३. ८४. १७७ आहुर्विधातृ प्रत्यक्षं ४. x ५९२ ।। इच्छया निर्मितिथैव ४. १७८. ५३१. इच्छया राज्यलाभादि २. ८७२. १६३ इच्छापराधीनविधेश्च दृष्टं १. २१२. ५३८ इच्छामात्रपराधीनों ४. २०७. ५३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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