Book Title: Prakrit Kavya Manjari
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur

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Page 8
________________ • पुस्तक के अन्त में कुछ अपठित पद्यांश भी दे दिये गये हैं, जो विद्यार्थियों के प्राकृत के ज्ञान-परीक्षण के लिए उपयोगी हैं । इस तरह 'प्राकृत काव्य-मंजरी' को सरल, रोचक और विषय की दृष्टि से ज्ञानवर्द्धक बनाने का प्रयास किया गया है। यह पुस्तक अजमेर बोर्ड के प्राकृत पाठ्यक्रम की आवश्यकता की तो पूर्ति करती ही है। किंतु इसे अन्य परीक्षा बोर्डी मैं भी प्राकृत शिक्षण के लिए निर्धारित किया जा सकता है। पुस्तक के कुछ पाठों में प्रर्धमागधी एवं शौरसेनी प्राकृत के भी प्रयोग हैं । शब्दरूपों आदि में वैकल्पिक प्रयोग भी हुए हैं। प्राकृत शिलालेख के मौलिक स्वरूप को सुरक्षित रखने की दृष्टि से उसके अशुद्ध पाठ को यथावत रखा है । कुछ मुद्रण की भी पशुद्धियां सावधानी रखते हुए भी रह गयी हैं। इन सब समस्यामों का हल और अशुद्धियों का संशोधन शिक्षक अपने विवेक और प्राकृत-व्याकरण के उपयोग से केरके विद्यार्थियों का मार्गदर्शन करेंगे, ऐमी उनसे अपेक्षा की जाती है । प्राभार प्राकृत काव्य-मंजरी में जिन ग्रन्थकारों,सम्पादकों एवं ग्रंथों से मूल पाठ्य सामग्री ली गई है, उनका यनास्थान संदर्भ दिया गया है। इन सब प्राचीन एवं नवीन ग्रन्थकारों एवं सम्पादकों का लेखक आभारी है । पुस्तक को तैयार करने की रूपरेखा बनाने में प्रारम्भ से अन्त तक उदयपुर विश्वविद्यालय में दर्शन के प्रोफेसर एवं प्राकृत के विद्वानडा. कमल चन्द सोगारणी का जो मार्ग-दर्शन प्राप्त रहा है, उसके लिए मैं प्रत्यन्त आभारी हूँ। गुजरात विश्वविद्यालय में पालि एवं प्राकृत विभाग के अध्यक्ष मेरे मित्र डॉ. के. आर. चन्द्रा एवं संस्कृत विश्वविद्यालय, वारपसी के प्राकृत एव जैनागम विभाग के अध्यक्ष डॉ गोकूलचन्द्र जैन ने इस पुस्तक की पाण्डुलिपि देखकर जो सुझाव दिये उनके लिए मैं उनका कृतज्ञ हूँ । विभाग के सहकर्मी प्राध्यापक डॉ. उदयचन्द शास्त्री एवं श्री एच. सी. जैन तथा विद्यार्थियों के सहयोग के लिए उनका धन्यव द-ज्ञापन करता हूँ। पुस्तक के प्रकाशन की व्यवस्था एवं मुद्रण प्रादि में राजस्थान प्राकृत भारती संस्थान के उत्साही एवं कर्मठ सचिव श्रीमान् देवेन्द्रराज मेहता, संयुक्त सचिव महोपा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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