Book Title: Prakrit Kavya Manjari Author(s): Prem Suman Jain Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur View full book textPage 7
________________ • प्राकृत साहित्य कथानों का भण्डार है । अतः प्रस्तुत संकलन में अधिकांश कथात्मक पद्यांश चुने गये हैं । कुछ मुक्तक-काव्य दिये गये हैं तथा राजस्थान के प्राकृत के शिलालेख से भी विद्यार्थियों को परिचित कराया गया है। • प्रत्येक पाठ के प्रारम्भ में पाठ-परिचय में ग्रन्थ एवं ग्रन्थकार के सम्बन्ध में ववरण देकर पाठ की विषयवस्तु को स्पष्ट किया गया है । • प्राकृत-शिक्षण की यह प्रारम्भिक पुस्तक होने के कारण प्रारम्भ में प्राकृतव्याकरण को अभ्यास के द्वारा समझाया गया है । • व्याकरण-ज्ञान के नियम अभ्यास के बाद दिये गये हैं, ताकि विद्यार्थियों में रटवे की प्रवृत्ति के स्थान पर प्रयोग की प्रवृित्त विकसित हो सके। ० कारकों (विभक्तियों) का ज्ञान कराने के लिये प्राकृत-गद्य में छोटे-छोटे पाठ तैयार कर दिये गये हैं । इन पाठों से विद्यार्थी विभक्ति-ज्ञान के साथ-साथ दैनिक व्यवहार के प्राचरण से भी परिचित हो सकेंगे। • संधि-समास, कृदन्त, सामान्य कर्मणि-प्रयोगों के लिए अलग पाठ दिये गये हैं । • मूल-पाठों (११ से ३१) के साथ अभ्यास में व्याकरण ज्ञान के साथ वस्तुनिष्ठ, लघुत्तरात्मक एवं निबन्धात्मक प्रश्न देकर विद्यार्थियों की बुद्धि-परीक्षण का प्रयत्न किया गया है। • प्राकृत भाषा एवं प्राकृत काव्य-साहित्य के इतिहास की जानकारी के लिये संक्षेप में मूल पाठों के बाद एक विवरण दे दिया गया है । • उसके के बाद परिशिष्ट में सर्वनाम, संज्ञा, क्रिया एवं कृदन्त की चारिकाए दी गयी हैं। • प्राकृत पाठों का अर्थ स्वतन्त्र रूप से और सही किया जाय इस दृष्टि से पाठों का हिन्दी अनुवाद भी दे दिया गया है। प्राकृत के शब्दकोश एव अन्य सहायक-सामग्री उपलब्ध न होने से यह अनुवाद विद्यार्थी एव शिक्षक दोनों के लिए उपयोगी होगा । अनुवाद को मूलानुगामी बनाने का प्रयत्न किया गया है। अन्य शब्द कोष्ठक में दे दिये गये हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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