Book Title: Prakrit Bhasha
Author(s): Prabodh Bechardas Pandit
Publisher: Parshwanath Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ सूचन अवश्य कर सकता है। इस विषय मे प्रो० बेण्डर अपने प्रथ 'होम आव धी इण्डोयुरोपिअस' प्रीन्सटन, १९२२ मे लिखते है : ___ इण्डोयुरोपीअन गण की प्राचीन भापात्रो मे निम्नलिखित पशु, पक्षियो और वृक्षो के लिये व्यवहृत जो शब्द है वे समान नही-हाथी, गेडा, ऊँट, सिह, बाघ, बन्दर, मगर, तोता, चावल, बरगद, बॉस, ताड़ । किन्तु निम्नलिखित चीजो के लिये तो अधिकाश समान शब्द ही है-बर्फ, कड़ाके की सर्दी, अोस, बीच, पाइन, बर्च, वोलो, ओटर, बीवर, पोलकेट, मार्टन, बीवर, रीछ, भेड़िया, हिरन, खरगोश, चूहा, घोडा, बैल, भेड़, बकरी, सूअर, कुत्ता, गरुड़, बाज, उल्लू , जे (Jay), हस, बत्तक, चिडिया, सॉप, कछुआ, चींटी, मधुमक्खी इ इ ।। ___ इसके आधार पर हम उसी स्थान की कल्पना कर सकते है जहाँ की आबोहवा इस प्रकार के प्राणी जीवन के अनुकूल थी। उससे आगे जाकर बिलकुल नियत स्थान की खोज करना हकीकत से बाहर जाकर कल्पना विहार करना होगा। अब रही बात 'इन्डोयुरोपियन' नाम की। यह नाम पहले तो ऐसे दिया गया था-विश्व मे इन्डिया से लेकर यूरोप तक जिस परिवार की भाषाएँ बोली जाती है उस भाषापरिवार का नाम इन्डोयुरोपियन । आज तो इस परिवार की भाषाएँ इस सीमा से बाहर भी बोली जाती है जैसे अग्रेजी, जो अमेरिका और आस्ट्रेलिया मे बोली जाती है । जर्मन विद्वान इस परिवार को इन्डोजर्मेनिक कहते थे। कई भाषाविज्ञानियो ने एक शब्द बनाया * Wiros जो इयु शब्द ही है, उनका सस्कृत है वीर । इस भाषा के लिए 'आर्यन' नाम इस्तेमाल कर सकते है, यदि इस नाम की मर्यादा समझ ली जाय तो। ये नाम सूचक है मात्र भाषा के, इससे कोई विशिष्ट जाति से सबध नही। कई जगह यह भाषा बोलनेवाले अनेक जाति के लोग होगे, प्राचीनतम काल मे भी यह इतनी ही सच हकीकत हो सकती है। प्रस्तुत व्याख्यानो मे मैने आर्य शब्द इस्तेमाल किया है, उसका अर्थ इतना ही है, यह सिर्फ एक भाषा का अभिधान ही है। कोई नया नाम खोजने के बजाय यह पुराना शब्द इस्तेमाल किया है, सिर्फ उसके अर्थ की मर्यादा हमेशा खयाल मे रखी जाय ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62