Book Title: Prakrit Bhasha
Author(s): Prabodh Bechardas Pandit
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 39
________________ ( ३५ ) मागधी के लक्षण ही है। इनके अतिरिक्त कई लक्षण ऐसे भी है जो उत्तरकालीन वैयाकरणो की मागधी से मिलते नही, किन्तु वे प्राचीन मागधी के सूचक है-स्वरान्तर्गत असयुक्त व्यजन अविकृत रहते है, न का मूर्धन्यभाव नहीं होता, सर्वनाम के रूपाख्यानो मे व्यक्ति वाचक के प्र पु ए व. मे अहकम्- जो हगे का पुरोगामी है- का प्रयोग होता है। इन आधारो पर ल्यूडर्स खलपात्र की इस भाषा को प्राचीन मागधी कहते है, और नाटको की मागधी का यह पुरोगामी स्वरूप है ऐसा अभिप्राय प्रदर्शित करते है। अगर इसे प्राचीन मागधी कहा जाय और यह कहने में कोई खास दिक्कत नही तो अर्धमागधी का स्वरूप क्या होगा? अर्धमागधी शब्द का अर्थ क्या ? आगम साहित्य मे बारबार ऐसा कहा गया है कि भगवान अर्धमागधी भाषा मे उपदेश करते है। अश्वघोष के नाटको की भापा की सहायता इस बारे मे मिल सकती है। उनके नाटकों का एक पात्र गोबं. ल्यूडर्स के मत के अनुसार, अर्धमागधी का व्यवहार करता है। उसकी भाषा के लक्षण ये है । अस्>-ए, र>ल, और श, स>स । प्रथम दो लक्षण उसको मागधी के साथ मिलाते है, किन्तु तीसरा उसको मागधी से अलग करता है। इसके अतिरिक्त अकारान्त नान्यतर नामो के द्वि व. व के पुप्फा, वाक्यसधि मे पुप्फा येव, हेत्वर्थ कृदंत भु जितये, वर्तमान कृढत गच्छमाने, स्वार्थिक-क की बहुलता ये सब लक्षण उल्लेखनीय है । पुग्फा और मुंजितये का साम्य अर्धमागधी से ही है, और श, सस होना अर्धमागधी का ही लक्षण है। इन आधारो से ल्यूडर्स इस पात्र की भाषा को प्राचीन अर्धमागधी कहते है। भरत के नाट्यशास्त्र के प्रख्यात विधान के अनुसार, नाटको मे अर्धमागधी का प्रयोग स्वाभाविक ही है। उत्तरकालीन नाटको मे यह प्रयोग नहीं मिलता, किन्तु अश्वघोष के पात्र की भाषा को प्राधीन अर्धमागधी कहने में कोई आपत्ति नही। वस्तुत , अगर भापा की दृष्टि से देखा जाय तो, इस समय की, पूर्व की भाषा के बोलीभेद कितने ? और किस तरह के ? अशोक की पूर्व की भाषा के लक्षण-अस्>-ए, र>ल, श, स>स, और कंठयो का तालुकरण । अश्वघोप की प्राचीन मागधी के लक्षण-अस् >-ए. रल, श, सश । एक ओर हम अश्वघोष की मागधी और

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