Book Title: Prakrit Bhasha
Author(s): Prabodh Bechardas Pandit
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 47
________________ मान भापायी को छोड कर समग्र भारतीय भाषाओ म कहाँ मिलते है? भारतीय भापाओ के अभ्यास की समग्र दृष्टि से आलोचना करते हुए झुल ब्लोख उनके ग्रथ 'लॉदो आर्या दु वेद पो ता मोर्न' पृ० ३७१-७२ मे कहते है____“योरपीय भापात्रो की तुलना मे सुविकसित भारतीय आर्य भाषाओ का शब्द कोप विपुल है। किन्तु योरपीय भाषाओ के शब्दो मे जैसी अर्थ की सूक्ष्मता और मानसिक सन्दर्भ ( subtlety and psychclogical associations ) है, वैसे उनमे नही । रोमास भाषागण और भारतीय आर्य भागागण के विकास में असाधारण साम्य होते हुए भी यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि भारतीय आर्य भाषा के विकास मे शिष्टो का लेखन आर्य जनता में प्रवेश पा न सका, और आम जनता मे से उनमें नये नये प्रवाह आ न सके, गति न मिली। इस तरह साहित्य और सस्कृति के बीच व्यवधान बढ़ता चला। पठन पाठन की प्रणालिका तो प्राचीन काल से चली आई है, किन्तु उस प्रालिका में भाषा की समृद्धि और सूक्ष्मता का गहराई से अध्ययन जेसा योरप में होता था वैसा यहाँ होता नहीं। इस तरह का अध्ययन केवल आधुनिक ही है । हमेशा एक ही भाषा का अध्ययन, होता रहा, वह भापा थी संस्कृत । यह भापा विद्वानो मे मर्यादित थी और उसका प्रयोग ज्ञान का अवतरण और उच्च प्रकार के चितन के लिए ही सीमित था । बोलचाल की भाषाओ के नमूने हमारे पास कितने कम है । मराठी के कुछ भक्ति के ग्रंथ और शिलालेख, थोड़े से राजपूत काव्य, बंगाल से उपलब्ध कहावतो के दो सग्रह, ये सब या तो भाटी के कवित्त है या धार्मिक या व्यावहारिक काव्य है। अधिकाश, यह साहित्य ब्राह्मणो के बडापन का विरोधी है, और ग्राम प्रजा के लिए लिखा गया है। उसकी प्रेरणा तो ब्राह्मण साहित्य से आती है, और उसका आदर्श उस पंडिताऊ साहित्य को हटाने का नहीं, सिर्फ लोकभोग्य रचना करने का ही है। ___ महाराष्ट्री काव्यो और सस्कृत नाटको के प्राकृत आर्य प्रजा की भापा से किसी तरह से सबद्ध नहीं और सस्कृति का जो चित्रण उनमे है वह भी मर्यादित उच्च वर्ग की प्रजा का है, जिनका आदर्श तो संम्कत ही था । पैशाची मे लिखी गई मशहूर बृहत था के जो कुछ

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