Book Title: Prakrit Bhasha
Author(s): Prabodh Bechardas Pandit
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 42
________________ ( ३८ ) है । यह साहित्यिक स्वरूप हमारी नव्य भारतीय आर्य भाषाओ का पुरोगामी साहित्य है। यह केवल साहित्यक स्वरूप है, बोली भेद अत्यत न्यून प्रमाण मे दृष्टिगोचर होते है। अधिकाश, पूर्व से पश्चिम तक एक ही शैली मे लिखा गया यह केवल काव्य साहित्य है। प्राचीन आगम साहित्य को हम दूसरी और तीसरी भूमिका के सक्रमण काल मे और शेप आगम साहित्य को तीसरी भूमिका मे रख सकते है । स्थल की दृष्टि से, अर्धमागधी पूर्व की भापा होते हुए भी कालक्रम से पश्चिम-मध्यदेश के प्रभाव से अंकित होने लगी। इस वास्ते पूर्व के श की जगह अर्धमागधी मे स का प्रयोग शुरू होता है, पूर्व के अस्>-ए की जगह पश्चिम का -ो भी आगमो मे व्यवहृत होता है, यद्यपि प्राचीन -ए भी आगमो में कई जगह सुरक्षित है ही। पूर्व के ल की जगह पश्चिम का र भी धीरे-धीरे व्यवहृत होता जाता है। इन सबसे यही सूचित होता है कि आगमो की पूर्व की भापा का पश्चिमी सरकरण आगमो की भापा का महत्त्व का प्रकार है । जैनधर्भ पूर्व मे पैदा होकर पश्चिम और दक्षिण मे फैलो, और वहा ही उसके साहित्य के प्रथम सस्करण हुए। इसका दूसरा कारण यह भी हो सकता है कि मगध-पाटलिपुत्र के ह्रास के बाद साहित्य और सस्कृति के केन्द्र भी पश्चिम में जा रहे थे।

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