Book Title: Prakrit Bhasha
Author(s): Prabodh Bechardas Pandit
Publisher: Parshwanath Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 38
________________ ( ३४ ) पूर्व की भाषा के ये लक्षण हमारे लिए मागधी अर्धमागधी के प्राचीनतम उदाहरण है। मागधी अर्धमागधी के लक्षणो की चर्चाएं काफी हो चुकी है। मागधी का दूसरा प्राचीनतम उदाहरण जोगीमारा-रामगढ का है । यह उदाहरण है छोटासा, फिन्तु करीबकरीब अशोक का समकालीन है, और ल्युडर्स ने इसकी भाषा की ठीक आलोचना की है। शुतनुक नाम देवदशिक्यि त कमयिथ वलनशेये देवदिने नम लुपदखे। इस छोटे से लेख की भाषा की सभी विशेषताओ की तुलना अशोक की पूर्व की भाषा के साथ हो सकती है। क का तालुभाव देवदशिक्यि, अकारात पु० प्र००० व० का - प्रत्यय, र का ल लुपदखे, बलनशेये । इसके अतिरिक्त स और श का श होना, जो मागधी की विशिष्टता है कि तु अशोक के पूर्व के लेखो मे भी अनुपलब्ध है वह हमे यहाँ मिलती है । अशोक के लेखो मे पूर्व का श नहीं मिलता, मध्यदेश का स कार ही मिलता है। मागधी का श कार है तो पुराना इसमे शक नहीं । डॉ चेटर्जी का सूचन है कि श कार प्राग्य गिना जाता होगा, इससे इसको अशोक की राजभाषा मे प्रवेश न मिला, और स कार शिष्टता की वजह से प्रयुक्त होता है। शकार को ग्राम्यता के दूसरे आधार भी मिलते है। नाटको के प्राकृतो मे नीच पात्र मागधी का व्यवहार करते है, और यहाँ स श का श होना उनकी मागधी की खास विशिष्टता है। अश्वघोष के नाटको मं- जो नाटको के प्राकृत के प्राचीनतम उदाहरण है- ल्यूडर्स के मतानुसार, प्राचीन मागधी का प्रयोग किया गया है। उनके एक नाटक का खलपात्र 'दुष्ट', मागधी का प्रयोग करता है। इस पात्र की भाषा की अशोक की पूर्व की भापा के साथ और जोगीमारा की मागधी के साथ तुलना की जा सकती है। अश्वघोप का प्राकृत, अशोक के प्राकृत से तीन चार शतक अर्वाचीन होते हुए सी, साहित्यिक शैली में लिखे जाने से, हमारे पुराणप्रिय देश में कुछ पुरानापन निभाता है, यह स्वाभाविक ही है। 'दुष्ट' की भापा के ये लक्षण-र का ल, स श का श, अकारान्त पु०प्र० ए०व० का -ए

Loading...

Page Navigation
1 ... 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62