Book Title: Prakrit Bhasha
Author(s): Prabodh Bechardas Pandit
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 34
________________ (30') ऋ का सामान्यत अ होता है, ओष्ठ्यवर्ण के सानिध्य मे उमग (मृग - ), मत (मृत - ), दढ (दृढ - ) कतता ( कृतज्ञता ), वृत्त ( वृत्त - ) मध्यदेश मे सामान्यत ॠ का इ होता है । ष स का भेद नही रहता, इन सबके लिये स ही मिलता है । पश्चिमोत्तर के अनुसार क्ष का छ होता है । मध्यदेश मे उसका ख मिलता है। छा, छुद (क्षुद्र ) । अपवाद - इथीझख | सयुक्त सयुक्त व्यजन मे स वैसा ही रहता है । अस्ति, हस्ति, सस्टि, स्रष्टि । √ स्था उसके ईरानी रूप मे - / स्ता रूप मे मिलता है, किन्तु उसका मूर्धन्यभाव भी होता है / स्टा-स्टिता, तिस्टंतो, घरस्त । सामान्यतया मध्यदेश मे इसका ट्ठ हो जाता है । र और य युक्त सयुक्त व्यंजनो का सावर्ण्य होता है ( assimlation )। व्य वैसा ही रहता है अतिकात (अतिक्रान्त), ती (त्रि०), परता (त्र), सब, अपचं, कलान (कल्याण) इथी (स्त्री- अध्यक्ष - ) । मगव्य, कतव्य | त्व और त्म का त्प होता है चत्पारो, चात्प । प्राचीन शौरसेनी मे त्ता मिलता है, तदनुसार सम्बन्धक भूतकृदंत मेवा > मिलता है हेत्वर्थ - छमितवे ( * क्षमितुम् ) द्वादस मे मिलता है । दुवे द्वे का प्रयोग भी मिलता है । अकारान्त पु० प्रथमा ए० व० का प्रत्यय सामान्यत :- है, सप्तमी ए० ० का म्हि । शोक के शिलालेखा मे मध्यदेश की भाषा के नमूने व्यवस्थित रूप से नहीं मिलते, किन्तु यदि उत्तरकालीन साहित्य पर दृष्टिपात करे तो अश्वघोष के नाटको की नायिका और विदूषक की भाषा

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