Book Title: Prakrit Bhasha
Author(s): Prabodh Bechardas Pandit
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 27
________________ ( २३ ) मव्यदेश की भाषा का प्रभाव है वह उनको पालि की ओर खिचता है। गगा जमना से लेकर महानदी पर्यन्त के पूर्व के शिलालेखो की भाषा से सबंध है नाटको की मागधी का । दक्षिण के आलेख आर्येतर भाषाभापी प्रजा के बीच मे लिखे गए है, इसलिए प्रधानत ये आलेख पूर्व के आलेखो की भापा से तात्त्विक दृष्टि से भिन्न नहीं, और जो कुछ भिन्नता मालूम होती है वह भिन्नता उनको जैना की अर्धमागधी की ओर खिच जाती है । कुछ अश से बैराट, सॉची और रूपनाथ के लेख भी इनसे सारय रखते है यह बात आगे सूचित की गई है। साहित्यिक प्राकुता ओर लेखो के प्राकृत का संबंध हमको तत्कालीन बोली विभागो का कुछ ख्याल अवश्य स्पष्ट कराता है । अलबत्त, यह भापाचित्र कितना अपूर्ण है, उसमे कितने शंकास्थान है, उसका ख्याल तो जब हम यह विविध भापासामग्री का विवरण करेगे तय ही आयगा। प्राचीन बोली विभागो के अभ्यास मे कुछ दिशासूचन नाटको के प्राकृत से भी मिलता है । सस्कृत नाटको मे प्राकृत का प्रयोग करने की प्रणालिका सस्कृत नाटका के जितनी ही पुरानी है । नाट्यशास्त्र के विधानो से पूर्व ही नाटको मे विविध पात्रो के लिए विविध प्रकार के प्राकृतो का प्रयोग करना ऐसी रूढि होगी। कौन से पात्र किस तरह का प्राकृत का व्यवहार करे इस विपय मे जो निर्णय किए गए है उसका प्राचीन बोली विभाजन से कुछ सबंध है ? सस्कृत नाटक, जिस रूप मे वह हमारे सामने है उसको क्या प्राचीन लोक जीवन का चित्र गिना जा सकता है ? सिल्वा लेव्ही ने ठीक ही कहा है कि काव्य और आख्यानसवाद (Fpc) को साहित्य से तख्तो पर ले जाने का जो प्रयोग वही है सस्कृत नाटक । उसका समर्थन करते हुए, उनके शिप्य मुल ब्लोखने भी ठीक ही लिखा है कि अगर हम सस्कृत नाटक को लोक जीवन का प्रतिबिब मानेगे तो भ्रान्ति होगी। और खास तौर से संस्कृत नाटक मे भाषा की जो रूढियों है उनका तो प्रत्यक्ष जीवन से कोई सबंध नहीं । प्रधानतया तीन भाषाओ का व्यवहार संस्कृत नाटक मे होता है-सस्कृत, शौरसेनी और मागधी। शिष्टजन संस्कृत म व्यवहार करते है, शिक्षित स्त्रीवर्ग और अशिक्षित पुरुषवर्ग शौरसेनी मे व्यवहार करते है, और जिनकी मजाक करनी है, जो नीच कुल के है, वे मागधी मे व्यवहार करते है। ये विभाग क्या किसी बोली

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