Book Title: Prakrit Bhasha
Author(s): Prabodh Bechardas Pandit
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 14
________________ ( १० ) इस इन्डोयुरोपियन गण की पूर्वी बोली, और हमारे लिए विशेष महत्त्व की है इन्डोईरानियन । भारत की प्राचीन भाषा और ईरान की प्राचीन भापा मे असाधारण साम्य है। और इससे ही ऐसा माना गया है कि ये दोनो एक प्राचीन भाषा की दो शाखाये है। वेद की प्राचीन भाषा से अवेस्ता की गाथाओ का जितना साम्य है इतना साम्य इन्डोयुरोपियन गण की कोई भी दो भाषाओ मे नहीं। ईरान राब्द भो प्राचीन शब्द * आर्या-नाम् का ही रूप है। आर्य का ष० ब० व० । आर्यानाम् , प्राचीन फारसी में 'एरान' और अर्वाचीन फारसी मे 'ईरान' । इन्डोयुरोपियन गण को किसी अन्य शाखा ने आज तक अपने प्राचीन नाम का इस तरह संरक्षण नहीं किया। भारत के आये और ईरान के आर्य पामीर के नजदीक किसी स्थल मे कुछ काल तक एकत्र रहे, और उसके बाद एक परिवार ईरान की ओर, और दूसरा भारत की ओर स्थिर होने लगा । जब ये लोग एकत्र रहते थे उस काल की उनकी भाषा को हम इण्डोईरानियन कहते है। यह इयु की एक बोली ही है, इसलिए इयु से साग्य होते हुए भी उनकी अपनी अनोखी विशेषताये भी है । इन्डोईरानयिन के, इस दृष्टि से कुछ व्यावर्तक लक्षण निम्न प्रकार के है। __ इयु के ह्रस्व और दीर्घ 'ए' और 'श्रो' सब इन्डोईरानियन मे ह्रस्व और दीर्घ 'अ' हो जाते है और इस प्रक्रिया से इयु के ये तीन स्वर-हस्व और दीर्य अ, ए, ओ-का भेद इन्डोईरानियन मे लुप्त हो गया है। यह ध्वनिविकास होते ही इन्डोईरानियन के रूपतत्र मे भी काफी परिवर्तन आ गया। इयु घोप महाप्राण + अघोप अल्पप्राण>इ ईरा घोष अल्पप्राण + घोष महाप्राण-उदा-batt>-bdu-( labh-t> lab dE-), आज्ञार्थ तृ पु. ए व उकारान्त होता है उदा स. a bharat.i, झेन्द-baratu, पुरानो फारसी bratuv इन्डोईरानियन गण को दो प्राचीनतम शाखाएँ है वेद की भाषा, और अवेस्ता । इनका परस्पर साम्य कितना अधिक है यह निम्नलिखित सर्वनाम के रूपाख्यान से स्पष्ट होगा।

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