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एक दिन श्रीकृष्णकीसभामें कुरूदेश के राजा दुर्योधनका दूत आया।
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महाराजाधिराज द्वारिकाधीश की जय महाराज हमारे स्वामी ने आपकी सेवा में एक प्रस्ताव भेजा है। यदि आपके पुत्र हों और उनके पुत्री अथवा आपके पुत्री और उनके पुत्र तो दोनों का विवाह कर देंगे, इस संबंध में उन्होंने आपकी सहमति चाही है,
श्रीमान
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हेदूत। राजा दुर्योधन से पहले हमारा कुशलक्षेमकहना। फिरकहना कि हमें उनका प्रस्ताव
स्वीकार है।
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दूती रुक्मिणी
सत्यभामा को इस प्रस्ताव कीजानकारी मिली, वह मनही मनशंकित हो उठी। वह सोचने
के पास पहुंची।
माता, महारानी सत्यभामाकी आज्ञा से एक निवेदन है। यदि आपके पुत्र का विवाह पहले हुआ तो आप उनकी चोटी पर पैर रखेगी। यदि उनके पुत्रका विवाह पहले हुआ तोवह आपकी चोटी पर पैर
रखेंगी
यदि
लभी.....
Ko/ रुक्मिणी
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(के पहले 'पुत्रहो गया, तब तो मेरी और भी अधिक उपेक्षा होगी।
कोई अच्छी बात 'तोनहीं, लेकिन यदि उनकी यही इच्छा है तोमुझे आपत्ति नहीं।
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उन्होने दूती को बुलाया और सक्मिणी केपाससंदेश भेजा.....