Book Title: Pradyumn Haran
Author(s): Dharmchand Shastri
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 16
________________ PAT दोनों में काफी समय तक युद्ध हुआ, गुफा के बाहर राजकुमार कुछ और हीसोच अंत में कर मग्न हो रहे थे। भुजंगदेव पराजित इतनी देर होगई। हुआ। लगता है दैत्यने प्रद्युम्नकोमार डाला।चलोलोट चलें। जाओ, तुम्हें मैजीवनदान देता हूँ।अबजब कभी मैं तुम्हें याद करूं, हाजिरहोना मैंहार मानता हूँ। आजसे में आपका सेवक जोकामबताऊं,तुरंत । आश्चर्य पूराकरना। और आपमेरे स्वामी।येकोष निधियां, विद्याटसब वह जीवित समझे। आपकी है।यह रत्नंजटितमुकुटधारण कीजिए और मुझे आज्ञा दीजिए, क्या करूं। (वापस आ रहा है। प्रद्युम्नको वस्त्राभूषण मैंतो पहले ही जानताथा तुमअवश्य तदन्तर राजकुमार विपुल पर्वत के समीप पहुंचे बंधु, इस पर्वत सेसज्जित देखसभी राज्यलक्ष्मी प्राप्त करोगे। बधाई।। शिखर पर मैं राजकुमारों ने ऊपरी जोभीइसपर्वत शिखर चलो अब किसीऔरजगह चलें। पर चढ़ने में सफल होगा, (चदनाचाहता हूं। आप मनसे प्रशंसा की। (जैसी आपकी उसेमनचाहा मिलेगा। अनुमति दें। इच्छा । Tar UTAM वजदंष्ट्र प्रद्युम्न कुमार को मारने के इरादे से चौदह अन्य स्थानों पर ले गया। प्रद्युम्न सभी जगह विजयी हुआ और उसे 14 विद्याएं प्राप्त हुई। /CHIRajuline प्रद्युम्नकुमार पर्वत शिखर पर पर्वत शिखर पर पहुंचने पर प्रद्युम्न कुमार को एक अपूर्व सुन्दरी वहां बैठी दिखाई दी। वह असमंजस में. चदने लगा। पड़ गया। तभी वहां वसंत नामक देव का आगमन हुआ। हे महानुभाव। यह अपूर्वसुन्दरी कौन है और इस निर्जन पर्वत पर क्यों बैठी है ? यह प्रभंजन नामक विद्याधरकी सुपुत्री है। गुरुवाणी है कि इसका विवाह राजकुमार प्रद्युम्न से होगा। गुरुमुख सेयहभी सुना है कि प्रद्युम्न कुमार कभी भी इसशिखर पर आ सकते हैं। यह उन्ही की प्रतीक्षामेंयहां बैठी है। VOICIPM प्रधुम्न कुमार ने अपना परिचय दियाऔर वसंतदेव की साक्षी पूर्वक उस सुन्दरीसेविवाह किया

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